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19 - न्यूरोपथी (Neuropathy)
215 उपर्युक्त प्रक्रिया शुरू होने के सचोट कारण अभी स्पष्ट नहीं है। फिर भी ५० से ६० प्रतिशत मरीजों में ए.आई.डी.पी. होने से पहले गले, जठर या आंत में वायरस का संक्रमण लगा हुआ देखा जाता है। उपरांत हड़कवा, धनुर या पोलियो जैसी बीमारी के टीके लेने के बाद भी कुछ मरीजों में यह बीमारी के चिह्न देखे जाते हैं । इसके उपरांत कभीकभी कोई शस्त्रक्रिया के कुछ सप्ताह बाद ए.आई.डी.पी. हो सकता हैं ।।
किसी भी उम्र में पाये जाने वाले इस रोग का विशेषतः प्रमाण ४० से ५५ वर्ष की आयु में विशेष पाया जाता है। कुछ ऋतुओं के साथ इस बीमारी का संबंध है ऐसा भी संशोधन के आधार पर प्रस्थापित हुआ है। बीमारी की तीव्रता अनुसार यह बीमारी को - सामान्य, मध्यम और अतितीव्र, यह तीन प्रकार में अलग किया जा सकता हैं ।
इस रोग के प्रारंभ में मरीज़ को पैर में झुनझुनी का अनुभव होता है, खालीमूंगी चढ जाती है, पैर दर्द होता है, तो अधिकतर मरीजों में चलते-चलते अचानक पैर लडखड़ा जाते है। दोनों पैरों में लगभग एक साथ ही असर होती है, या क्रमशः कमजोरी बढ़ने से अन्ततः दोनों पैर और हाथ संपूर्णत: पक्षाघात में परिवर्तित हो जाते हैं । दो-चार दिन से लेकर दो-चार सप्ताह तक ऐसा देखा जाता है। कई मरीज़ों में झुनझुनी की शिकायत नहीं भी होती है।
मस्तिष्क में से निकलने वाले कुछ ज्ञानतंतु को जब असर होता है, तब मरीज के चेहरे के स्नायु निष्क्रिय हो जाते हैं। आवाज़ में फर्क हो जाता है, आहार निगलने में तकलीफ होती है। पानी पीते समय नाक से प्रवाही बाहर आ जाता है
और श्वासोच्छ्वास में तकलीफ हो सकती हैं। दस प्रतिशत मरीजों को श्वासोच्छवास में तकलीफ होती है, जो जिंदगी को खतरे में डाल देती है। ऐसे मरीजों को 'वेन्टिलेटर' कुछ दिनों तक तहत कृत्रिम श्वासोच्छ्वास दिया जा सकता हैं।
इस बीमारी के अन्य लक्षण में हृदय की धड़कन की अनियमितता देखी जाती है। कभी बी.पी. कम या ज्यादा हो जाता है या अतिशय पसीना होता है। रक्त में सोडियम की मात्रा कम हो सकती है। मरीज़ संपूर्णत: होश में होता है और क्वचित मरीज़ को मल-मूत्र पर अंकुश बनाए रखने में तकलीफ होती है। लेकिन यह क्वचित ही देखा जाता है। उसके AIDP, Sensory, AMAN, AMSAN, MMN ऐसे अलग-अलग प्रकार है।
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