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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ (९) रेबीस ( हडकवा) :
कुत्ता, बंदर, लौमडी और गरम रक्तवाले अन्य प्राणी तथा चमगादड़ आदि के काटने से होनेवाली और अचूक मृत्यु लानेवाली यह भयावह बीमारी वायरस से होती है । प्राणी के काटने से ३० से ६० दिन में
और कभीकभी छ महिने में यह बीमारी प्रगट हो जाती है। प्रारंभ में व्यवहार में फर्क दिखता है, मरीज उत्तेजित हो जाता है और बाद में पक्षाघात आदि हो सकते है । मुख्यतः पानी देखकर वह घबरा जाता है और थोड़े समय में श्वास बंद होने से अथवा हृदय की गति बिगड़ने से मृत्यु होती है । श्रेष्ठ देखरेख या दवाई के बाद भी शायद ही कोई मरीज बचता है । इसलिए उसकी रोकथाम पहले से ही करनी अत्यंत जरूरी है। प्राणी के काटने से प्रत्येक केस में रेबीस का टीका और एन्टीसीरम का उपयोग हितकारक है। हालांकि पुराने टीकों की कुछ विपरीत असर भी है। इसलिए अब नये संशोधित रिफाईन्ड टीके (जो थोड़े महंगे है), और जो HDCV नाम से जाने जाते है, वह देना हितकारक है । इस संदर्भ में डॉक्टर की सलाह तुरंत लेनी चाहिए ।
उपसंहार :
मस्तिष्क की इन तमाम संक्रमित बीमारियों की चर्चा से जाना जाता है कि मस्तिष्क तथा शरीर की ऐसी विभिन्न संक्रमित बीमारियाँ मंद रोगप्रतिकारक शक्ति की वजह से होती है । इसलिए रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। योग्य पौष्टिक आहार लेना, व्यायाम करना, स्वच्छता बनाए रखना, गंदगीवाली वस्तु-जगह से दूर रहना और पानी उबालकर पीना, पूरी नींद लेना आदि रोगप्रतिकारक शक्ति बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
इसके उपरांत घर में या काम करने की जगह पर कुछ संक्रमित बीमारीवाले मरीजों से सावधानी रखनी चाहिए । मरीज के परिवारजनों को सावधानी के लिए डॉक्टर कभीकभी एन्टिबायोटिक अथवा अन्य दवाई देते हैं। इससे अन्य व्यक्ति की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है, इसलिए इस प्रकार की दवाई लेने में हिचकिचाहट नहीं करना चाहिए | अधिक मानसिक श्रम
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