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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ चाहिए । पेनिसिलीन इस बीमारी की अकसीर एन्टिबायोटिक है । जो १० से १४ दिन तक दी जाती है । पेनिसिलीन की एलर्जी हो तो टेट्रासायक्लिन दिया जा सकता है ।
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मरीज को अंधकारयुक्त कमरें में रखकर, झटके के दौरे को रोकने के लिए सतत डायाझेपम बोतल में औषधि के रुप में योग्य मात्रा में नस में या स्नायुमें इन्जेक्शन के रुप में दिया जाता है । कभीकभी वेन्टिलेटर पर रखकर न्यूरोमस्कयुलर ब्लोकिंग भी किया जाता है । अनैच्छिक सिस्टम की अनियमितता के कारण ब्लडप्रेशर में चढाव - उतार, बुखार और हृदय की समस्या भी हो तो, उसका सावधानीपूर्वक उपचार करना चाहिए ।
टीटेनस रोकने के लिए टीकाकरण :
यह एक बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक प्रक्रिया है जिससे अनेक जिंदगियां बच सकती है । दो महिने से अधिक उम्र की प्रत्येक व्यक्ति को और जिसने टिटेनस का टीकाकरण बराबर नहि करवाया हो तथा जो मरीज टीटेनस की बीमारी से तत्काल ठीक हुआ हो, उसको टीटेनस टोक्सोइड (TT) द्वारा पद्धतिसर संपूर्ण टीकाकरण करना चाहिए | TT का पहला इन्जेकशन लेने के बाद एक महिना पूरा होते ही इन्जेकशन का दूसरा डोज लेना चाहिए। उसके पश्चात् छ महिने के बाद तीसरा डोज लेना चाहिए । उसके पश्चात् प्रत्येक दस वर्ष में TT का एक बुस्टर डोज लेना होता है । गर्भवती स्त्री को एक्स्ट्रा डोज दिये जाते है । इस प्रकार टीके का संपूर्ण कोर्स करने से टिटेनस के सामने प्रतिकारशक्ति बढ़ती है । जब कभी भी जख्म हो तो TT का एक डोज फिर से दिया जाता है । यदि जख्म खराब हो तो ह्युमन टीटेनस इम्युनोग्लोब्युलिन का एक डोज (२५० Units/I.M.) दिया जाता है । टिटेनस के निवारण (Prevention) हेतु यह सामान्य मार्गदर्शन ही है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति/ केस में विभिन्न कारणों को ध्यान में लेकर उपचार का अंतिम निर्णय तो डॉक्टर को ही लेना पड़ता है ।
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