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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ पहुँचते है । उसमें से अन्ततः नए स्पोरोज़ोइट्स पैदा होते हैं, जो मच्छर के डंस द्वारा दूसरे मनुष्य के रक्त में मिलते हैं । रक्तकणों में प्रवेश किए हुए बाकी मेरोजोइट्स विकास, विभाजन और वृद्धि का क्रम चालू रखते हैं । परिणामतः यह रक्तकण भी तूटते है और असंख्य मेरोजोइट्स फिरसे रक्त में मिलते है तथा बाद में दूसरे रक्तकण में दाखिल होते है । वाइवेक्स मलेरिया में यह चक्र लंबे समय तक चलता रहता है । फाल्सीपेरम प्रकार में मानव शरीर में एक ही चक्र होता है ।
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वास्तव में असंख्य रक्तकणों के एक साथ तूटने-फटने से मलेरिया की बीमारी में ठंडी लगती है और बुखार आता है । बारबार मलेरिया होने के कारण जो एनेमिया होता है, ( रक्त में फीकापन, कम लोहतत्त्व हीमोग्लोबिन) उसका भी यही कारण है ।
इस प्रकार मादा एनोफिलिस मच्छर और मनुष्य के बीच अपना आना-जाना चालू रखकर मलेरियल पेरेसाइट्स अपना और साथ ही मलेरिया की बीमारी का अस्तित्त्व और जीवनचक्र बनाए रखते हैं । इस प्रकार संक्रमित मच्छर काटने के बाद ८ से १४ दिन के बाद ही मलेरिया का बुखार होता है ।
मलेरिया के लक्षण :
मलेरिया के हमले की तीन अवस्थाएँ हैं :
(१) प्रारंभ में मरीज़ थरकन या सख्त कंपन का ( चारपाई भी हिल जाए उस प्रकार का ) अनुभव करता है ।
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(२) कंपन शांत होते ही बुखार चढ़ता है और गर्मी लगती है। (३) कुछ समय के बाद बहुत पसीना होने के बाद बुखार उतर जाता है । मरीज को कमजोरी महसूस होती है ।
फिर तीसरे दिन (वाइवेकस प्रकार मे) ऐसा ही हमला होता है । इसके साथ सिरदर्द, शरीर में दर्द, उल्टी, डकार के साथ हल्की खांसी भी रहती है । कुछ केस में होठ पर फफोले भी होते हैं ( हर्पिस सिम्प्लेक्स लेबियालिस) ।
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