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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ याददास्त (तुरंत या तो भूतकाल की बातें याद रखने की शक्ति) में कमी । अधिक समय तक पुरानी याददास्त अच्छी रहती है। स्थल-समय का ज्ञान कम होना । निर्णयशक्ति कम होना । नीरसता बढना, डिप्रेशन आना, अतिशय क्रोध आना । रोग आगे बढ़ने से इन मरीजों को अपना दैनिक कार्य निभाने में तथा रोजमर्राह के कामकाज में भी तकलीफ होने लगती है। मरीज प्रतिदिन की घटनायें और परिचित व्यक्तियों के नाम भूलने लगता है। सगे-संबंधी, मित्रों और जानीपहेचानी वस्तुओं को पहचानने में तकलीफ; और मरीज चीजें इधर-उधर रख देता है । साफसफाई, रसोई या खरीदी जैसी बातो में पराधीन हो जाता है। स्नानादि और वस्त्रपरिधान के लिए भी उसे मदद की जरूरत पडती है। बातचीत करने में और घुमने-फिरने में भी मुश्किल होती
अलग अलग तरह के भ्रम उत्पन्न होते है ।। मरीज को खाने-पीने में मुश्किल होती है । वे संयोगो और परिस्थिति का विश्लेषण करने में असफल होते हैं। घुमने फिरने में तकलीफ पडती है । व्यक्तित्व में परिवर्तन आने से मरीज अपनों से अलग हो जाता है। मल-मूत्र कार्य अनियंत्रित हो जाता है । सार्वजनिक तौर पर विचित्र वर्तन करता है।
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