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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ घुमने-फिरने और आराम के लिए मरीज को किसी प्रकार का बंधन महेसूस न हो, इस प्रकार का नित्यक्रम आयोजित कर देना चाहिए । इसके उपरांत नई दवाई जैसे कि रिवास्टिग्मिन, गेलेन्टामाईन और डोनेपेज़िल उपयोग में लाई जा सकती है । उसके उपरांत एन्टिप्लेटलेट प्रकार
की दवाई मरीज के रोग के कारण अनुसार देनी चाहिए । वंशानुगत तरीके में होनेवाला आल्जाइमर या अन्य डिमेन्शिया में उनके नजदीक के सगेसंबंधी (पुत्र, पुत्री, भाई-बहन आदि), अर्थात् स्वस्थ वारिस की पहले से ही इस रोग के संदर्भ में जाँच करना कितना उचित या व्यवहारिक है, यह एक गूढ प्रश्न है ।
__परंतु कई देशो में ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध है कि जनीन की जाँच (वंशानुगत लक्षणों की जाँच) द्वारा यह रोग इस व्यक्ति को भविष्य में वंशानुगत होगा या नहीं वह प्रमाण में निश्चित ही जाना जा सकता है।
अधिकतर डिमेन्शिया जैसे लक्षण मानसिक तनाव की स्थिति में भी होते है, जिसमें मुख्यतः डिप्रेशन या स्ट्रेस ही कारण बनते है उसे स्यूडोडिमेन्शिया कहते हैं । योग्य न्यूरोलोजिकल जाँच से ही वह जाना जा सकता है । उसकी चिकित्सा प्रमाण में सरल हैं । यह रोग नियंत्रित किया जा सकता है, और उसकी असर लँबे समय तक रहती नहीं है और बढ़ती भी नहीं है।
कई मेडिकल रोगो में भी कम या अधिक मात्रा में याददास्त, व्यवहार, व्यक्तित्व इत्यादि पर असर हो सकता है, तब कई बार भूल से आल्जाईमर का निदान होते हुए देखा गया है । जैसे कि, थाईरोइड का कार्य कम होना (हाईपोथाईरोइड), विटामिन B12 की कमी, कुछ कोलेजन डिसिज जैसे कि, एस.एल.ई. इत्यादि ।
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