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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ (६) कदम धीरे पड़ जाना, चलतेचलते खडे रह जाना ।
(Postural instability) (७) याददास्त में कमी आना, डिप्रेशन होना, अधिकतर पसीना
होना, शरीर में दर्द होना, आवाज धीरी और नीरस ( Monotonous) हो जाना, चहेरे के हावभाव कमअदृश्य होना, मुँह से राल टपकना और आंखों की पलके
खोल-बंध होने की प्रक्रिया मंद होना । ऐसे लक्षण दिखें तो डॉक्टर को मिलकर रोग का इलाज करवाना जरूरी हो जाता है । चिकित्सा की दृष्टि से इस रोग को पांच अलगअलग अवस्था (stages) में बाँटा गया है ।
यह रोग उम्र के कारण होने से मस्तिष्क के घिसाव (wear & tear) के साथ जुड़ा हुआ होता है, लेकिन उसके निश्चित कारणों को अभी संपूर्णत: जाना नहीं गया है। कई बार दवाईयों के दुष्प्रभाव से, सिर में जख्म के कारण, जहरीली गैस या जैविक रसायनों से होता नुकशान या वायरस से, असामान्य संयोग में वंशानुगत कारणों से भी यह रोग होता है। अधिकांश केस में कोई समज नहीं सके ऐसे अज्ञात कारणों से ही (इडियोपेथिक) यह रोग होता है ।
कई बार यह रोग अन्य किसी बड़े रोग के लक्षणों के रूप में भी देखने को मिलता है। जैसे कि मल्टीसिस्टम एट्रोफी अथवा प्रोग्रेसिव सुप्रान्युक्लियर पाल्सी। उसमे आगे बताये गये कंपन के साथ साथ कई
और लक्षण दिखते है। ___औसतन हर पाँचसौ में से एक व्यक्ति को पार्किन्सोनिझम हो सकता है । ६० वर्ष से अधिक उम्र में औसतन १.५ % लोग इस रोग से पीडित हैं । कई बार युवावस्था में भी यह रोग होते हुए देखा गया है । जब 'डोपामीन' नामक मस्तिष्क का रसायन उत्पन्न करने वाले
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