________________
5- पक्षाघात - लकवा (पेरेलिसिस) STROKE
1
एक बार पक्षाघात का प्रारंभिक उपचार मिलने के बाद में पक्षाघात दुबारा न हो इसके लिए एन्टीप्लेटलेट ग्रूप की दवाई जैसे कि एस्पिरिन, क्लोपीडोजेल, डायपारीडेमोल और टिक्लोपीडीन इत्यादि बहुत लंबे समय तक दी जाती है । किस मरीज़ को इसमें से कौन सी दवाई कितनी (एक या दो प्रकार की), कितनी बार देनी चाहिए, वह मरीज़ की प्रकृति और रोग पुनः होने की संभावना को ध्यान में रखकर डॉक्टर तय करते है । कुछ मरीज़ को ओरल एन्टीको एग्यूलन्ट दवाई भी (जो थोड़ी खतरनाक भी है) देनी पडती है ( उदाहरण... वोरफेरीन, एसीट्रोम इत्यादि) ।
उचित केसों में गले की रक्त को ले जानेवाली नलिकाएँ (केरोटिड और वर्टिबल आर्टरी को) अल्ट्रासाउन्ड तकनीक डॉप्लर से जांच की जाती है और अगर केरोटिड नलिका ६०-७० % जितनी अवरुद्ध लगे तो डी. एस. ए. या एम. आर. ए. जैसे एन्जियोग्राफी द्वारा उसकी निश्चितता तय की जाती है । एन्जियोग्राफी में रक्त ले जाने वाली यह नलिकाएँ ७० % से अधिक मात्रा अवरुद्ध लगे तो अनुभवी न्यूरोसर्जन या वास्क्यूलर सर्जन के पास केरोटिड नलिका पर सर्जरी करके अवरोध दूर किया जाता है । केरोटिड एन्डआर्टरेक्टमी नाम से प्रख्यात यह सर्जरी अपने देश में अभी विदेश जितनी प्रचलित नहीं है, लेकिन कुछ वर्षों से उसका व्याप बढ़ता जा रहा है और उनके अच्छे परिणाम देखें गए है । यह पद्धति का खतरा १ से २ प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । बायपास सर्जरी के विरुद्ध जिस प्रकार हृदय में एन्जियोप्लास्टी होती है, उसी प्रकार कई केसों में अब के रोटिड एन्जियोप्लास्टीने एन्ड आर्टरेक्टमी सर्जरी की आवश्यकता कम कर दी है । स्टेन्ट डालकर एन्जियोप्लास्टी करने से लम्बे अरसे तक पक्षाघात (स्ट्रोक) से बच सकते हैं ।
Jain Education International
केरोटिड स्टेन्टिंग
67
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org