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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ यह इंजेकशन महँगा होता है, जिसकी सारवार का खर्च हेमीफेसियल स्पाझम में औसतन रु. ४ से ५ हजार होता है । ब्लेफेरोस्पाझम में
औसतन रु. ६ हजार का खर्च होता है । ४ से ६ महीने के बाद उसका असर सामान्यतः खत्म होने से यह इंजेकशन दुबारा देना पड़ता है । कभीकभी किस स्नायु में देना है यह सही तरीके से जानना मुश्किल हो जाता है । तब इ.एम.जी. नामक स्नायुओं के टेस्ट की मदद से यह स्नायु ढूँढना पडता है और अगर डोज़ अधिक हो जाए तो उससे स्नायु की कार्यक्षमता कुछ दिनों तक कमजोर हो जाती है। जैसे कि आँखो की पलकों का बंद हो जाना । इस कारण यह इंजेक्शन केवल निष्णात न्यूरोलोजिस्ट अथवा इस प्रकार की योग्य ट्रेनिंग प्राप्त फिजिशियन द्वारा ही लेना चाहिए ।
यह बोटुलिनम इंजेक्शन जो बोटोक्स, डिस्पोर्ट इत्यादि नाम से मिलता है, वह दो चेतातंतु जहाँ मिलती है, वहां सायनेप्स के प्रीसायनेप्टिक कोलिनजिक टर्मिनल पर इस प्रकार का बंध (बोन्ड) बनाता है कि जिससे चेतातंतु से कंट्रोल हुए स्नायुपेशियों का फंक्शनल डिनर्वेशन हो जाता है । जिससे स्नायु की पेशियों को वह कमजोर बनाता है । यह कमजोरी धीरे धीरे खत्म हो जाती है । इस बोटोक्स इंजेक्शन द्वारा उपचार का व्याप अत्यंत शीघ्रता से बढ़ रहा है, जिससे डिस्टोनीआ के अलावा जो भी स्नायु में खिचाव महसूस हो अथवा स्नायु में दर्द उठता हो, वहाँ उपयोग में आता है । पक्षाघात के बाद स्नायुओं में आनेवाला कडकपन (spasticity) और उसके साथ अंगों में होनेवाली विचित्र स्थिति (posture) में बोटोक्स इंजेक्शन से अधिक लाभ होता है, परंतु ४ से ६ महीने बाद इसका असर फिर से कम हो जाता है ।
सेरेब्रल पाल्सी से कडक हुए हाथ-पैर के उपचार से लेकर स्नायुओं के दर्द और उम्र को छुपाने के लिए झररियों की ट्रीटमेन्ट तक इन सभी में बोटुलीनम इंजेक्शन उपयोगी है यह सिद्ध हुआ है । उसका डोज़ छोटे स्नायु में २ युनिट से लेकर कुल १५०-२०० युनिट तक हो सकता है।
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