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5 - पक्षाघात-लकवा (पेरेलिसिस ) - STROKE कर सकती है। अगर पक्षाघात बढ़ता जाए तो हेमरेज नहीं है, वह जानने के लिए दुबारा सी. टी. स्केन से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
विशेष में थ्रोम्बोसिस के केस में शुरुआत के थोड़े दिनों तक कुछ मात्रा में ब्लड-प्रेशर स्थिर रखना चाहिए, एकदम शीघ्रता से ब्लड प्रेशर कम नहीं करना चाहिए । B.P. शीघ्रता से कम कर देने पर मस्तिष्क को रक्त कम मिलने से पक्षाघात बढ़ सकता है। ऊपर का (सिस्टोलिक) बी. पी. करीबन २०० और नीचे का (डायास्टोलिक) करीबन ११० हो तब तक ब्लडप्रेशर की कोई दवाई (थ्रोम्बोसिस के केस में पक्षाघात के प्रारंभिक ७ दिन तक ) न्यूरोलोजिस्ट डॉक्टर देते नहीं हैं (अपवादरूप है अभी अभी हुआ हार्टएटेक या एन्जाइना हो या कोई विशिष्ट कारण लगता हो) । (३) न्यूरोप्रोटेक्टिव दवाई : ____ पक्षाघात के केस में सैद्धांतिक तरीके से कोषों को नष्ट होने से बचाने के लिए (रक्त और ऑक्सीजन सरक्युलेशन की कमी से) ऐसे केमिकल्स पक्षाघात होने के प्रारंभिक ६ से २४ घंटो में देने चाहिए, जो कोषों को लम्बे समय तक पोषण दे सके या ऑक्सिजन पहुंचा सके या चयापचय की समस्या दूर करे या कोषों के आवरण को सुरक्षा दे कर कोषों को टूटने से रोके । ऐसी करीबन ३० से ४० प्रकार की दवाई (नीमोडीपीन, सीटीकोलीन, पीरासीटाम, एमके-८०१, एरवेजेल) प्रयोगात्मक परीक्षण में से पास हो चूकी है, लेकिन पता नहि क्यों हकीकत में जब यह दवाई मरीज़ो को देते है तब अपेक्षित सुधार नहीं होता है। उसके कुछ वैज्ञानिक कारण भी है, इस लिए उसमें संशोधन कर नयी दवाई विकसित की जा रही हैं । वह अगर शीघ्र ही दी जाए तो कोषों को रक्त तथा ऑक्सिजन की कमी होने पर भी बचायें जा सकते है या लंबे समय तक जीवित रखें जा सकते है । आजकल सीटीकोलीन और इडारावोन (एरेवोन) दवाई ज्यादातर वपराश में है। (४) कोम्प्लिकेशन्स :
पक्षाघात के हमले के दौरान कुछ मरीज़ो को कोम्प्लिकेशन होते हैं जो बीमारी की गंभीरता बढ़ा देते है, जैसे कि मस्तिष्क में सूजन
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