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इसी वर्ष पाली नगर में पहले-पहल प्लेग का आगमन हुआ ।
उन दिनों राज्य में नाथों का बड़ा प्रभाव था । राज्य का अधिकांश रुपया उनके हाथों में पहुँच जाने पर भी उनकी तृष्णा शान्त नहीं होती थी । इसीलिये उन्होंने राज्य में अनेक प्रकार के कर बढ़वा कर और कई जागीरदारों की जागीरें जब्त करवा कर बड़ा अंधेर मचा रक्खा था । इससे तंग आकर वि० सं० १८६५ ( ई० स० १८३८ ) में सरदारों ने अजमेर स्थित कर्नल सदरलैंड के पास अपनी शिकायतें पेश कीं ।
महाराजा मानसिंहजी
इस पर पहले तो उसने महाराज को अपने राज्य का प्रबन्ध ठीक करने और सरदारों पर होनेवाली सख्तियों को दूर करने के लिये लिखा । परन्तु जब इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया, तब वि० सं० १८६६ की चैत्र सुदि ६ ( ई० स० १८३९ की २१ मार्च) को स्वयं कर्नल सदरलैंड ( ए. जी. जी. ) और पोलिटिकल एजैंट मि० लडलो राजपूताने की अन्य रियासतों के वकीलों और मारवाड़ के सरदारों को साथ लेकर जोधपुर आए ।
इस पर महाराज ने उनका यथोचित सत्कार किया । अन्त में आपसकी बातचीत के बाद महाराज ने कुछ सरदारों और उनके वकीलों को बुलवाकर जागीरों के गांवों की सूची बनाने का आदेश दिया; और उसके बनजाने पर उसीके अनुसार सब सर - दारों को उनकी जागीरों के पट्टे देने का वादा कर लिया । परंतु आसोप का नया गोद का मामला मंजूर करने से इनकार करदिया । यह सब होजाने पर भी नाथों को हटाने और अंतरंग-प्रबन्ध के बारे में सदरलैण्ड और महाराज का मत नहीं मिला ।
१. इसी के अगले वर्ष ( वि० सं० १८६३ = ३० स० १८३६ ) में यह बीमारी जोधपुर नगर में भी पहुँच गई ।
२. इनमें रास, आउवा, पौकरन, नींवाज, चंडावल, बासनी और हरसोलाव के ठाकुर या उनके प्रतिनिधि थे; और साथीण का ठाकुर भाटी शक्तिदान इनका मुखिया था ।
३. वि० सं० १८६६ की वैशाख सुदि ७ ( ई० स० १८३६ की २० अप्रेल ) को महाराज - कुमार सिद्धदानसिंहजी का देहान्त हो गया । इनका जन्म वि० सं० १८६५ की वैशाख सुदि ७ को हुआ था ।
४. सरदारों ने शिवनाथसिंह को हटाकर करण सिंह के पुत्र को वहां पर गोद बिठा दिया था । परंतु महाराज ने उसे हटवा दिया। इसके बाद एकवार करणसिंह ने चढ़ाई कर आसोप को घेर लिया । परंतु पौकरन, आउवा और रास के ठाकुरों के तथा बड़े साहब के दबाव से वह सफल न हो सका ।
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