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मारवाड़ के सिक्के
१२१३ के करीब ) से मारवाड़ में फ़ीरोज़ी सिक्कों का, १६०० = ई० स० १५४३ ) से शेरशाही सिक्कों का और १६२२ = ई० स० १५६५ ) से मुगल बादशाहों के
( वि० सं० १३५१ = ई० स० शेरशाह के समय ( वि० अकबर के समय ( वि० सं०
सं०
सिक्कों का प्रचार हुआ ।
इसके अलावा जौनपुर, मालवा और गुजरात के मुसलमान - शासकों के तांबे के सिक्कों के मिलने से उनका भी यहां पर किसी हद तक प्रचलित होना अनुमान किया जा सकता है' ।
कर्नल जेम्स टॉड ने अपने 'ऐनाल्स एण्ड ऐण्टिविटीज ऑफ राजस्थाने' में मारवाड़ - नरेश महाराजा अजितसिंहजी का वि० सं० १७७७ ( ई० स० १७२० ) में अजमेर से अपने नाम का सिक्का चलाना लिखा है । परन्तु न तो अबतक उस समय का सिक्का ही मिला है, न अन्यत्र कहीं इसका उल्लेख ही ।
अबतक के मिले प्रमाणों से प्रकट होता है कि मारवाड़ - नरेश महाराजा विजयसिंहजी ने ही पहले-पहल, वि० सं० १८३७ ( ई० स० १७८० ) में बादशाह शाहआलम (द्वितीय) से आज्ञा प्राप्त कर अपना निज का विजयशाही सिक्का चलाया था ।
इसपर फ़ारसी लिपि में एक तरफ़ शाह आलम का नाम और दूसरी तरफ़ ( जोधपुर की ) टकसाल का नाम लिखा रहता था । यह सिक्का महाराजा विजयसिंहजी का चलाया होने से ' विजयशाही' और इसपर बादशाह शाह आलम द्वितीय का सनेजलूस ( राज्यवर्ष ) २२ लिखा होने से 'बाइसंदा' मी कहाता था ।
वि० सं० १८६३ ( ई० स० १८०६ ) में शाह आलम की मृत्यु हो जाने से इसपर मुहम्मद अकबरशाह द्वितीय का नाम लिखा जाने लगा और वि० सं० १८६४
१. कहीं कहीं अजमेर, नागोर और अहमदाबाद की बादशाही टकसालों के बने रुपयों का भी यहां पर विशेष तौर से चलन होना लिखा मिलता है ।
२. ऐनाल्स एण्ड ऐटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, ( क्रुक सम्पादित ) भा० २, पृ० १०२६
३. यह नाम अब तक केवल तांबे के सिक्कों पर ही मिला है। फिर भी इससे अनुमान होता है कि इसी प्रकार का परिवर्तन चाँदी सिक्कों पर भी हुआ होगा । परन्तु विलियम विल्फर्ड वैब ने विजयशाही सिक्कों पर ई० स० १८५८ तक शाह आलम के नाम का लिखा जाना ही माना है ।
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