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मारवाड़ का इतिहास
( ई० स० १८३७) में उसकी मृत्यु के कारण उसके नाम के स्थान पर बहादुरशाह द्वितीय का नाम लिखा गया । परन्तु वि० सं० १९९६ ( ई० स० १८५६ ) से इसपर एक तरफ़ मुग्गल बादशाह के नाम के स्थान पर महारानी विक्टोरिया का और दूसरी तरफ़ मारवाड़ - नरेश महाराजा तखतसिंहजी का नाम जोड़ दिया गया ।
यथा- समय यही परिवर्तन नागोर, सोजत, पाली और मेड़ता की टकसालों में मी किया गया । इन टकसालों के सिक्कों पर जोधपुर के स्थान पर उन-उन नगरों का नाम लिखा जाता था ।
वि० सं० १९२६ ( ई० स० १८६९) में उपर्युक्त सारी ही टकसालों के सिक्कों पर ( जोधपुर-नरेशों की इष्ट देवी का सूचक ) नागरी अक्षरों में " श्रीमाताजी " और जोड़ दिया गया । इसके बाद वि० सं० १९२९ ( ई० स० १ =७३ ) में मारवाड़ - नरेश महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) का, वि० सं० १९५२ ( ई० स० १८६५ ) में महाराजा सरदारसिंहजी का, वि० सं० १९६८ ( ई० स० १९११ ) में महाराजा सुमेरसिंहजी का और वि० सं० १९७५ ( ई० स० १९१८) में वर्तमान- नरेश महाराजा उम्मेदसिंहजी साहब का नाम लिखा गया । इसी प्रकार महारानी विक्टोरिया के स्वर्गवास पर वि० सं० १९५७ ( ई० स० १९०१ ) में बादशाह एडवर्ड सप्तम का, वि० सं० १९६७ (ई० स० १११०) में बादशाह जॉर्ज पञ्चम का, वि० सं० १९६२ ( ई० स० १९३६ ) में बादशाह एडवर्ड अष्टम का और उनके राज्यसिंहासन छोड़ने पर वि० सं० १९९३ ( ई० स० १९३६) में बादशाह जॉर्ज षष्ठ का नाम दर्ज किया गया ।
विशेष बातें ।
पहले प्रतिवर्ष नए ठप्पे तैयार कर सिक्के बनाने का रिवाज न होने से एक ही ठप्पा कई वर्षों तक काम में आता रहता था और आवश्यकता होने पर ही नया ठप्पा बनाया जाता था ! इसके अलावा ठप्पा बनाने वाला बहुधा पुराने ठप्पे को देख कर ही नया ठप्पा बनाया करता था । इससे कमी-कभी गलती भी हो जाती थी । इसी से महारानी ( विक्टोरिया ) के नामवाले कुछ सिक्कों पर मी २२ का अ ( जो शाहआलम द्वितीय का सन - ए - जलूस था ) लिखा मिलता है । महाराजा तखतसिंहजी के
१. यहां पर यह परिवर्तन वि० सं० १६१७ ( ई० स० १८६०) में हुआ ।
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