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मारवाड़ का इतिहास
इसी प्रकार यहां पर चौहानों के सिक्कों का प्रचार रहना मी अनुमान किया जाता है । इस ( चौहान ) वंश के राजाओं में से अजयदेव, उसकी रानी सोमलेदेवी, सोमेश्वर और उसके पुत्र प्रसिद्ध चौहान-नरेश पृथ्वीराज के सिक्के मिलते हैं ।
इनके साथ ही यहांपर फदिया नाम के सिक्के के प्रचलन का भी पता चलता है ।
वि० सं० १५१७ के एक लेख में, जिस बावड़ी के बनवाने में १,२१,१११ फदिये खर्च होना लिखा है, ख्यातों में उसी के लिये १५,००० रुपये खर्च होना दर्ज है । इस से अनुमान होता है कि उस समय एक रुपये के करीब - फदिये मिलते थे। परन्तु यह सिक्का अबतक देखने में नहीं आया है । हमारा अनुमान है कि फदिया से गघिया-शैली के सिक्के का ही तात्पर्य होगा। इनके अलावा विक्रम की नवीं शताब्दी में सिंधपर शासन करने वाले अरब-हाकिमों के चलाए सिक्कों के मिलने से उनका भी यहां पर प्रचार रहना पाया जाता है । ये सिक्के आकार में ब्रिटिश-भारत की चांदी की दुअन्नी से आधे और बहुत पतले होते हैं और इनपर हाकिमों के नाम लिखे रहते हैं । इस प्रकार के सिक्के मारवाड़ के अनेक स्थानों से मिले हैं ।
चौहान-नरेश पृथ्वीराज के मरने के बाद यहां पर दिल्ली के सुलतान-नरेशों के सिक्कों का प्रचार हुआ होगा। इसी सिलसिले में फीरोजशाह (द्वितीय) के समय
१. यह अजयदेव वि० सं० ११६५ ( ई० स० ११०८) के आस-पास विद्यमान था। इसके सिकों पर एक तरफ भद्दी-सी लक्ष्मी की मूर्ति बनी होती है और दूसरी तरफ 'श्री
अजयदेव' लिखा होता है। २. सोमलदेवी के सिक्कों पर एक तरफ गघिये सिके कासा राजा का चेहरा और दूसरी तरफ
'श्रीसोमलदेवी' लिखा होता है। ३. यह वि० सं० १२३० (ई. स. ११७३ ) के करीब विद्यमान था। इसके सिक्कों पर एक तरफ सवार की भद्दी मूर्ति और 'श्री सोमेश्वरदेव' और दूसरी तरफ नन्दी का चित्र
और 'पासावरी श्री सामन्तदेव' लिखा होता है । ४. यह (पृथ्वीराज ) वि० सं० १२४६ (ई. स. ११९२) में शहाबुद्दीन के साथ के युद्ध में
मारा गया था। इसके सिकों पर भी एक तरफ सवार की भद्दी मूर्ति और 'श्री पृथ्वीराजदेव' और दूसरी तरफ नन्दी का चित्र और 'आसावरी श्री सामन्तदेव' लिखा
रहता है। इसके कुछ सिक्के ऐसे भी मिले हैं, जिन पर एक तरफ पृथ्वीराज का और दूसरी तरफ सुलतान
मुहम्मदसाम का नाम लिखा होता है ।
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