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परिशिष्ट-८
मारवाड़ के सिक्के
इतिहास
अनुमान होता है कि मारवाड़ में भी पहले ठप्पे लगे हुए ( पंच मार्क्ड) सिक्कों का प्रचार रहा होगा । इन सिक्कों पर किसी राजा का नाम न होकर मनुष्यों, पशुओंों, वृक्षों, शस्त्रों, स्तूपों अथवा अन्य पवित्र समझी जानेवाली वस्तुओं के चिह्न बने होते हैं। इन चिह्नों के जुदा-जुदा ठप्पों द्वारा धातु के बने मोटे पत्रपर छापे जाने के कारण इनके बीच के व्यवधान का कोई नियम नहीं होता । किसी सिक्केपर दो चिह्न पास-पास बने मिलते हैं, तो किसी पर दूर-दूर । इसी प्रकार इन सिक्कों के आकार का भी नियम न होने से ये भिन्न-भिन्न आकार के देखने में आते हैं ।
इसके बाद यहां पर क्षत्रपों के सिक्कों (द्रम्मों) का व्यवहार हुआ होगा । ये सिक्के आकार में गोल होते हैं और इनपर एक तरफ़ राजा का गर्दन तक का चित्र और सम्वत्, तथा दूसरी तरफ़ राजा का और उसके पिता का नाम मय उनकी उपाघियों के लिखा होता है ।
क्षत्रपों के बाद गुप्तों की मुद्राओं का प्रचलन हुआ होगा । परन्तु मारवाड़ में अभी तक इन मुद्राओं के न मिलने से इस विषय में निश्चितरूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । फिर मी परिस्थितियां उपर्युक्त बातों का ही समर्थन करती हैं ।
यहां पर गघिया या गधैया शैली के सिक्के अधिकता से मिलते हैं । इससे अनुमान होता है कि गुप्तों के बाद अथवा हूण- नरेश तोरमाण के समय ( विक्रम की छठी शताब्दी के उत्तरार्ध ) से ही यहां पर इन सिक्कों का प्रचार होने लगा होगा । मारवाड़
में
इन सिक्कों की तीन किस्में मिलती हैं:
१. किसी-किसी पर ग्रीक अक्षरों के-से अक्षर भी बने होते हैं ।
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