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महाराजा उम्मेदसिंहजी इसके बाद वि० सं० १९९४ की ज्येष्ठ वदि १४ ( ई० स० १९३७ की ७ जून ) को महाराजा साहब हवाई जहाज़ से लौट कर सकुशल जोधपुर पहुँचे ।
वि० सं० १९९४ की सावन वदि ३ ( ई० स० १९३७ की २६ जुलाई ) को महाराजा साहब ने एक दरबार किया और उसमें अपने राजकीय कर्मचारियों को सम्राट् के राज्याभिषेकोत्सव-संबन्धी पदक ( Coronation Medals ) प्रदान किएं ।
वि० सं० १९९४ की कार्तिक वदि १ ( ई० स० १९३७ की २० अक्टोबर ) को पाँचवे महाराज-कुमार का जन्म हुआ।
पहले लिखा जा चुका है कि वि० सं० १९४२ ( ई० स० १८८५ ) में भारत सरकार ने मेरवाड़े के २१ गांवों पर जोधपुर-दरबार का अधिकार मानते हुए भी उनका प्रबन्ध हमेशा के लिये अपने अधिकार में कर लिया था। परन्तु वि० सं० १९६४ के माघ ( ई० स० ११३८ की जनवरी ) में राज्य-संघ ( Federation ) के सिलसिले में वे गाँव फिर से जोधपुर दरबार को लौटा दिए गए ।
इस समय तक गवर्नमैंट को जोधपुर-दरबार की तरफ़ से १,०८,००० रुपये सालाना खिराज के और १,१५,००० रुपये ( वि० सं० १८७४=ई० स० १८१८ की सन्धि के अनुसार ) फ़ौज-खर्च के दिए जाते थे । परन्तु आगे से, ऐरनपुरे की मीणा-फ़ौज ( कोर ) के तोड़ दिए जाने से, यह पिछली रकम नहीं देनी होगी ।
१. इस खुशी में अगले रोज़ दफ्तरों में छुट्टी की गई और स्कूलों के विद्यार्थियों को मिठाई
दी गई। २. इस अवसर पर १६ पदक मुल्की ( Civil ), २६ पदक फौजी ( Military ) और
१६ पदक जोधपुर-रेल्वे के अफसरों और कर्मचारियों को दिए गए। ३. इस अवसर पर भी किले से १२५ तोपें दागी गई, ५ दिनों की छुट्टी की गई, ८ कैदी __ छोड़े गए और १०३ कैदियों की मियादें घटाई गई।
वि० सं० १६६४ की पौष वदि ३० (ई० स० १६३८ की १ जनवरी) को भंडारी बिल्लमचंद ( फाइनेंस-सेक्रेटरी ) को 'रायसाहब' की उपाधि मिली । ४. इन गांवों में ३ नये आबाद हुए गांवों के मिले होने से इस समय इनकी संख्या
२४ हो गई है।
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