________________
मारवाड़ का इतिहास
ई० स० १९३० से ही देश में नाज की कीमत गिर रही थी। इससे ई० स० १९३४ में उपर्युक्त नई ‘सैटलमैंट' के द्वारा निश्चित किए भूमि के लगान (बीघोड़ी) में तीन वर्ष के लिये फी रुपये तीन आने की छूट दी गई, और ई० स० १९३७ (वि० सं० १९९४ ) में एक वर्ष के लिये यह छूट और भी जारी रक्खी गई।
ट्रिब्यूट (Tribute ) का महकमा । इस महकमे ने भी अच्छी उन्नति की है और जागीरदारों की जागीर की आय पर लिए जाने वाले रेख और चाकरी नामक करों का हिसाब साफ़ रखने के लिये उन्हें बकों की सी पास-बुकें' दे दी गई हैं।
आजकल जागीरों से संबन्ध रखनेवाली वसूली आदि का सारा काम इसी महकमे के द्वारा होता है, क्योंकि रेख, चाकरी, हजूरी दफ्तर, हकूमतों की लाग-बाग और जन्ती का काम भी इसी के अधीन कर दिया गया है ।
आबकारी (Excise ) का महकमा। मारवाद के अन्य सारे ही प्रान्तों में पहले से ही आबकारी का कानून जारी था, परन्तु मल्लानी परगने के जसोल, सिंधरी, गुड़ा और नगर में इसका प्रचार वि० सं० १९७७ (ई० स. १९२०-२१) से किया गया। वि० सं० १९७६ (ई० स० १९२२ ) में इस विषय (आबकारी) का नया कानून बना । इसके बाद वि० सं० १९८० ( ई० स० १९२३ ) में नमक और आबकारी का महकमा शामिल कर दिया गया और वि० सं० १९८१ (ई० स० १९२४ ) में शराब तैयार करने के लिये एक आधुनिक ढंगका कारखाना ( Distillery ) बनाया गया ।
मारवाड़ में इस समय शराब की दुकानों का नम्बर घटकर २४३ के स्थान पर २३१ हो गया है और अफीम बेचने के तरीके में भी रद्दोबदल की गई है ।
जोधपुर-दरबार को मिलने वाला नमक पहले नीलाम के जरिये बेचा जाता था। परन्तु वि० सं० १९८७ (ई० स० १९३०) से वह ठेके (Contract) के जरिये बेचा जाने लगा है और इससे राज्य को ३०,००० रुपये का फायदा हुआ है । परन्तु ठेका लेनेवाले को प्रत्येक स्थान पर वहां के लिये नियत किए भाव पर ही नमक बेचने का अधिकार होने से जनता को इस प्रबन्ध से किसी प्रकार की असुविधा नहीं
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com