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जागीरदारों पर लगनेवाले राजकीय कर
इसी बीच उपर्युक्त चाकरी के भी नियम बना दिए गए। इनके अनुसार जागी. रदारों के लिये जागीर की एक हज़ार की वार्षिक आय पर एक घुड़-सवार, साढे सात सौ की आय पर एक शुतर-सवार और पाँच सौ की आय पर एक पैदल रखना निश्चित हुआ । परन्तु कुछ ही काल में जागीरदारों द्वारा नियत की जानेवाली जमैयत के आदमियों और वाहनों की दशा ऐसी शोचनीय हो गई कि वे केवल समाचार लाने-लेजाने या ऐसे ही अन्य छोटे-छोटे काम करने लायक रह गएं । इसके अलावा जहां ३९,६३,००० की आय की जागीरों पर करीब ३,९६३ सवार आदि होने चाहिए थे। वहां वे इस संख्या के आधे से भी कम रह गए। यह देख दरबार ने इन सवारों आदि के स्थान में नकद रुपया लेना तय किया और इसके अनुसार घुड़-सवार के १७, शुतर-सवार के १५ और पैदल के ८ रुपये निश्चित हुए। वि. सं० १९०१ में यहां पर अंगरेज़ी रुपये का चलन हो जाने से यह रकम घटाकर एक हज़ार के पीछे १५ रुपये करदी गई। परन्तु फिर भी बहुत कम जागीरदारों ने नकद रुपया देना स्वीकार किया । अन्त में वि० सं० १९६६ ( ई० स० १९१२) में यह रकम घटा कर एक हजार पीछे १२ रुपये कर दी गई। इस पर सारे ही जागीरदारों ने इसे स्वीकार कर लिया ।
इसके अलावा जो जागीरदार अपनी जागीर की असली आमदनी पर चाकरी देना चाहते हैं, उनकी जागीर की आमदनी की जांच की जाकर उसके अनुसार चाकरी लेने का भी नियम है । परन्तु ऐसे जागीरदारों की आमदनी की जांच हर दसवें साल नए सिरे से होती है ।
जागीरदारों पर लगनेवाले इस करको ही 'चाकरी' कहते हैं ।
१. इसका मुख्य कारण जागीरदारों का कम वेतन पर आदमियों को भरती करना था । २. बहुधा बड़े-बड़े जागीरदार और उनके पक्ष के जागीरदार न तो पूरे मनुष्य रखते थे न
पूरे घोड़े आदि ही।
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