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मारवाड़ का इतिहास
पहले पहल ई० स० १९१७ में यहाँ पर टेलीफ़ोन का १०० लाइन का बोर्ड लगाया गया था । इसके बाद ई० स० १९२८ में २० लाइन का और ई० स० १६३२ में २५ लाइन का बोर्ड और बढ़ाया गया । ई० स० १९३६ में इन सब बोर्डे की एवज में ३०० लाइन का नया बोर्ड लगाया गया । इसी वर्ष एक नया 'पावटा - सब - एक्सचेंज' खोला गया और उसमें भी १०० लाइन का बोर्ड लगाया गया ।
ई० स० १९१८ में टेलीफोन को काम में लानेवालों की संख्या बहुत ही कम थी । परन्तु इस समय उनकी संख्या बढ़कर ३१४ हो गई है । साथही राईका बाग - राजमहल और विम अस्पताल में निजी फ़ोन ( Automatic telephone ) भी लगाए गए हैं।
इनके अलावा हालही में सुमेरसमंद से नगर में पानी लाने के लिये जो नहर बनाई गई है उसके पंपिंग स्टेशनों की सुविधा के लिये टेलीफोन की १०३ मील लंबी नई लाइन तैयार की गई है ।
पहले शहर का मैला भैंसों द्वारा खींची जानेवाली गाड़ियों में ले जाया जाता था । परन्तु अब मैले की गाड़ियां इंजिन द्वारा लोहे की पटरी पर खींची जाती हैं । इसके लिये ४ इंजिन, २२२ मैला ले जानेवाली गाड़ियां (tip wagons ), और ३१ ब्रेक वैन्स रक्खे गए हैं ।
शहर के 'वाटर वर्क्स' ( नलों द्वारा पानी देने) का काम भी पहले इसी महकमे के अधिकार में था । परन्तु ई० स० १९३१ से यह पब्लिक वर्क्स महकमे को सौंप दिया गया है ।
आकिंयॉलॉजीकल डिपार्टमेन्ट ( पुरातत्त्व विभाग ) और सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी ।
वि० सं० १९६६ ( ई० स० ११०१ ) में जब लॉर्ड किचनर जोधपुर आए, तब उन्हें दिखलाने के लिये मारवाड़ में बनने वाली वस्तुओं का एक स्थान पर संग्रह कर उसका नाम 'इण्डस्ट्रियल म्यूज़ियम' रक्खा गया था। इसके बाद वि० सं० १९७१ ( ई० स० १९१४ ) में पहले पहल इस म्यूज़ियम ( अजायबघर ) का प्रबन्ध धुनिक ढंग पर किया गया और इसमें प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुओं को भी स्थान
दिया गया ।
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