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महाराजा उम्मेदसिंहजी (Stein buck), डिक- डिक ( Dic-dic), कोंगोनी (Congoni ), न्यू (Gnu), थोपसन का चिकारा (Thompson's gazelle) और ग्रांट का चिकारा ( Grant's gazelle) । ये सब शिकार बाद में नैरोबी (Nairobi) से रवाना किए गए थे, और मसाला भरे जाने के बाद इस समय महाराजा साहब के महलों की शोभा बढ़ाते हैं । इन सब में हाथी के कान की मेजें और भी दर्शनीय हैं ।
वैसे तो जंगली जानवरों की आवाजें पड़ाव के निवास को मज़ेदार बनाती रहती हैं । परन्तु इस यात्रा में एक-दो घटनाएं, जिनका वर्णन आगे किया जाता है, ऐसी भी घटी थीं, जिन्हें मज़ेदार कहने के स्थान पर उत्तेजना-दायक कहना अधिक उपयुक्त होगा ।
एक रात को महाराजा साहब के कैम्प से क़रीब एक मील पर रहने वाले वहां के एक स्थानीय पुरुष के चौपायों पर सिहों ने आक्रमण कर दिया । ऐसे समय मोटरकार से गोली चलाना ही उचित होता है । अतः इस घटना की सूचना मिलते ही महाराजा साहब उस गहरी रात में चौपायों पर हमला करने वालों को भगाने के लिये खेमे से रवाना हुए । यह याद रखने की बात है कि सिंह को मनुष्य का मांस बहुत पसन्द होता है । परन्तु महाराजा साहब ने वहां पहुँचते ही तत्काल दो सिंहों को मार गिराया । इनमें से एक तो मरकर मोटर के इंजिन (Radiator) पर ही, जिसपर उसने याक्रमण किया था, आ गिरा ।
एक रात्रि को महाराज अजितसिंहजी के आगे चलनेवाले खेमे में हाथी घुस आए । यद्यपि वे हाथी इस सफ़ाई से ख़ेमे के पार हुए कि न तो खेमे की कोई रस्सी ही टूटी न मेख ही, तथापि उसे तत्काल खाली कर देना पड़ा ।
इस प्रकार की घटनाओं के कारण ही एफ्रिका की झाड़ियों में डेरा लगाने वाले समझदार पुरुषों के लिये भरी बंदूक पास में रखकर सोना आवश्यक होता है ।
ऊपर महाराजा साहब की पहली सफरी का; जिसका अर्थ एफ़्रिकावालों की बोलचाल के अनुसार शिकार के लिये यात्रा करना होता है, संक्षिप्त वर्णन दिया गया है । एक ख़ास दिन के शिकार या छाया चित्र लेने का खुलासा वर्णन इस विषय की अनेक प्रसिद्ध पुस्तकों में मिल सकता है; और जैसा उन पुस्तकों में लिखा गया है, वैसा ही प्रत्येक शिकारी को अनुभव होता है । इसलिये यहां पर उसका विशद विवरण देना
अनावश्यक है ।
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