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महाराजा उम्मेदसिंहजी की चेष्टा भी करने लगते हैं । यह दृश्य चल - चित्र ( सिनेमा की तसवीर ) खींचने वाले के लिये पूर्व मौके का होता है । अक्सर ऐसा मौका भी या जाता है, जब रस्सा खोलकर लाश सिंहों के पास छोड़ देनी और लॉरी कुछ दूर हटा लेजानी पड़ती है । इसके बाद जब सिंह, मारकर नजर किए हुए अपने प्रियतर भोजन को ग्रहण करने लगते हैं, तब लॉरी फिर पास सरका ली जाती हैं, और तसवीर खींचने का कार्य पूरी तत्परता से शुरू कर दिया जाता है | परन्तु जिस समय काले बालवाले ववर शेर की नाक ज़ीबरे की लाश में गहरी घुसी होती है, उस समय उसका पूरा चहरा तसवीर में नहीं सकता । ऐसे समय उस भक्षण में तत्पर मृगराज का ध्यान भोजन से हटाने के लिये लॉरी की बगल में ज़ोर से खटखटाना पड़ता है, और इससे वह उस शब्द का कारण जानने के लिये अपना सिर ऊपर उठा लेता है । यह कार्य एक बच्चे की तसवीर खींचने के समान है; क्योंकि फोटोग्राफ़र को चित्र खींचते समय उसकी दृष्टि कैमरे की तरफ़ आकृष्ट करने के लिये उसे पुकारना पड़ता है । इस प्रकार चित्र खींचे जाने के समय सहायक शिकारी (Chief hunter ) लॉरी चलाने वाले की बगल में बैठा रहता है, क्योंकि कभी-कभी भड़कीले स्वभाव का कोई नौजवान सिंह दिए हुए भोजन से असन्तुष्ट होकर लॉरी की खोज करने के लिये अधिक निकट जाता है और ऐसे समय उसे सीसे का भोजन देकर ( गोली मारकर ) शान्त करना पड़ता है । परन्तु भाग्य से ऐसी आवश्यकता ही नहीं पड़ी । इसके अलावा आम तौर पर कोई भी शिकारी ऐसे सिंह - शावक पर गोली चलाना उचित न समझेगा, जिसका चर्म केवल अजायबघर के 'नैचुरल हिस्ट्री' - ( मृतजीव-जन्तुओं वाले ) विभाग के ही उपयोगी हो । अस्तु, महाराजा साहब के ये चल और अचल चित्र, जो कुछ उन्होंने वहां पर देखा, उसके और दोनों प्रकार के चित्र खींचने में उनकी कुशलता के चिर- स्मारक
रहेंगे ।
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