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मारवाड़ का इतिहास
साधारण तौर पर हाथी के पद चिह्नों से उसकी विशालता का अन्दाजा होजाता है और फिर शिकारी को होशियारी के साथ जंगल में कई घंटों तक उनका अनुसरण करना पड़ता है । यह बड़ा ही कठिन कार्य है । इसके बाद जब यह अनुमान हो जाता है कि शिकारी की टोली शिकार के पास पहुँच गई है, तब शिकारी अपनी बन्दूक, जिसे अब तक वाहक ( Gun boy ) लिये होता है, स्वयं ले लेता है ।
जंगल में महाराजा साहब की पार्टी के लोगों का, जो थे, क्रम साधारणतया इस प्रकार रहता था:
खोज देखनेवाला, कप्तान मरे स्मिथ, बन्दूक - वाहक, बन्दूक वाहक, महाराज अजितसिंहजी ( यदि वह शिकार के गए हों ), तीसरा बन्दूक - वाहक और दो या तीन मज़दूर ।
एक कतार में रहकर चलते
ऐसी यात्राओं में यह भी एक ध्यान देने की बात है कि, टोली जितनी ही छोटी होगी उसकी आवाज़ भी उतनी ही कम होगी । परन्तु इसकी विशेषता उस समय और भी बढ़ जाती है, जिस समय यह ज्ञात होजाता है कि एक टहनी का टूटना भी कभीकमी हाथी को आनेवाले खतरे से खबरदार कर भाग जाने को प्रेरित कर देता है । बहुधा ऐसे जंगलों में झाड़ी इतनी संघन होती है कि यदि २० गज की दूरी से हाथी का पार्श्व दिखलाई दे जाय तो भी उसके सिर और पूंछ की दिशाओं का पता लगाना असम्भव हो जाता है । इसी से ऐसे समय उसके गिर्द चक्कर लगाकर उसके मस्तक को देखना और उसके दोनों दांतों के मौजूद और उसको मारकर प्राप्त करने योग्य होने का निश्चय करना आवश्यक होता है ।
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महाराजा साहब, दूसरा लिये अन्य स्थान पर न
शिकारियों के २५ या ३० गज के फ़ासले पर पहुँच जाने पर उनकी आवाज सुनकर या गन्ध पाकर हाथियों का भाग खड़ा होना कोई अनोखी बात नहीं है । ऐसे देश में जहां हवा अक्सर रुख बदलती रहती है शिकारी का सफल होना उसके भाग्य पर ही निर्भर रहता है और बहुधा उसे हताश होना पड़ता है । परन्तु अन्य अनेक कारणों में से यह भी एक कारण है कि जिससे लोग हाथी का शिकार करने को लालायित रहते हैं ।
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