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मारवाड़ का इतिहास
हां, आगे शेरों के छाया- चित्र लेने का कुछ हाल दिया जाता है । यह ऐसे स्थान पर ही ठीक तौर से लिया जा सकता है, जिस का कुछ भाग संरक्षित - शिकारगाह हो और जहां पर बहुत ही कम बंदूक दागने की इजाजत दी जाती हो। इससे उस भाग के पशु, साधारण जंगली जानवरों से, कम भड़कने वाले हो जाते हैं ।
ऐसे स्थान का शेर मोटरकार से बिलकुल ही नहीं डरता और मोटर के तेल की गन्ध उसमें बैठे हुए प्रादमियों का गन्ध से तेज़ होने के कारण, जब तक वह उन लोगों की बात-चीत नहीं सुन लेता या उन लोगों के अपने को अधिक प्रकट कर देने के कारण देख नहीं लेता, तब तक उस ख़तरे को नहीं समझ सकता । इसलिये यह नियम बना लिया गया है कि, तसवीर लेने वाला फोटोग्राफर लॉरी के पिछले भाग में बैठता है और वह लॉरी धीरे-धीरे चलाई जाती । जब शेर दिखाई देते हैं तब वह उनसे क़रीब पचास गज़ के फ़ासले पर ले जाकर खड़ी कर दी जाती है ।
एकवार लॉरी ने एक छोटे शेर के दिल में ऐसा शौक़ पैदा कर दिया कि वह उसकी वास्तविकता को जानने के लिये उससे पन्द्रह गज़ के फ़ासले तक चला आया । इससे तसवीर लेने में बड़ी सुविधा हुई, और इस प्रकार लिए हुए उस चित्र को उस छोटे सिंह की पूरी छवि कहैं तो भी प्रत्युक्ति न होगी । परन्तु सिंह इस तरह की कृपा सदा ही नहीं किया करते । इसलिये उन्हें ललचाना पड़ता है । इसका यह तरीका है। कि सिंहों वाले स्थान से एक या दो मील हटकर एक जीबरा ( Zebra ) या न्यू ( Gnu) ( जिसे विल्डबीस्ट Wilde beeste भी कहते हैं ) गोली से मार लिया जाता है और उसका पेट चाक कर दिया जाता है । इसके बाद उसकी लाश लॉरी के पीछे रस्से से इस प्रकार बांध दी जाती है कि वह लॉरी के पिछले बोर्ड से करीब पन्द्रह ग्रज्र की दूरी पर जमीन पर घसिटती चलती है । इस प्रकार पेट चाक की हुई लाश को लेकर जब लॉरी शेरों के पास लौट कर पहुँचती है, तब उसकी गन्ध उनका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है और वे उसका पता लगाने को आगे बढ़ आते हैं । कभी-कभी वे बहुत आगे बढ़ आते हैं और लॉरी के पीछे धीरे-धीरे घसिटती हुई पशु की लाश को पकड़ने
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