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मारवाड़ का इतिहास
शिकार के पशुओं का होना अनुमान किया जाता है । इसी से यहां पहुँच यह पार्टी अपने कैंप से, जिसकी ऊंचाई दो हजार फुट थं, कई घंटों तक उन पशुओं क झुन्डों का तमाशा देखती रही; क्योंकि यह एक हमेशा याद रहने वाला दृश्य था । यद्यपि दूरी के कारण न तो यहां छाया चित्र ही खींचे जा सकते थे न संरक्षित- प्रदेश (Game preserve ) होने से शिकार ही किया जा सकता था, तथापि जिन्होंने इसे एकबार देख लिया है, वे इसे किसी तरह नहीं भुला सकते ।
यहां से आगे सेरेंगेड्डी ( Serengetti) के मैदान को, जो १०० मील से भी लम्बा निर्जल प्रदेश है, पार करने के लिये पूरी खबरदारी और प्रबन्ध की आवश्यकता होती है । यह एक ऐसा निर्जल प्रदेश है कि वहां पर मनुष्यों के और मोटरों के रेडीयेटरों के लिये जल का मिलना असम्भव है । यद्यपि यह यात्रा भी इस मैदान को पारकर दूसरे किनारे के प्रसन्नता हुई। वैसे तो इस जगह का मिल जाता था ।
खासी भली थी, तथापि आखिरी कैंप में पहुँचने से प्रत्येक व्यक्ति को पानी भी मैला और अस्वादु था, फिर भी वह
यहां पर महाराजा साहब ने ४ दिनों में ही ४६ सिंहों के चित्र खींचे । यद्यपि यहां पर सिंहों (Lions) का शिकार करना बहुत आसान था, तथापि आपने किसी पर गोली नहीं चलाई; क्योंकि यहां पर पहले के समान शिकार का पीछा करने से उत्पन्न होने वाले रोमाञ्चकारी साहस का आनन्द न था । फिर भी यहां पर खींचे हुए चल (Cinema ) और अचल चित्र इस प्रदेश की, जहां पर सभी तरह के शिकार पाए जाते हैं, स्मृति को अक्षुण बनाए रक्खेंगे ।
इस समय तक महाराजा साहब के जोधपुर लौटने का समय भी करीब यान पहुँचा था । इसलिये आपकी पार्टी मोटरों से सुगम पड़ावों पर ठहरती, सेरेंगेट्टी को पारकर अरुशा और मोशि होती हुई वौइ या पहुँची, और वहां से रेल द्वारा मोंबासा और फिर वहां से केनिया जहाज द्वारा बम्बई आ गई । इसके बाद भादों सुदि ७ ( ( २७ अगस्त) को सब लोग जोधपुर पहुँचे ।
इस यात्रा वर्णन में जिन पशुओं के शिकार का उल्लेख हो चुका है, उनके अलावा निम्नलिखित पशुओं का शिकार भी किया गया था:
तेंदुआ (Panther), टोपी (Topi), गेरेनुक ( Gerenuka), छोटा कूड्डु (Lesser Kudu), इलैंड (Eland), इग्पाला (Impala), पानी की बक (Water buck),
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