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३४ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) यह महाराजा तखतसिंहजी के बड़े पुत्र थे, और उनका स्वर्गवास होने पर, वि० सं० १९२६ की फागुन सुदी ३ ( ई० स० १८७३ की १ मार्च ) को, जोधपुर की गद्दी पर बैठे'। इनका जन्म वि० सं० १८९४ की आश्विन सुदि ८ ( ई० स० १८३७ की ७ अक्टोबर) को अहमदनगर में हुआ था।
वि० सं० १९३० के वैशाख ( ई० स० १८७३ के अप्रेल ) में इन्हों ने राज्यप्रबन्ध और प्रजा के सुभीते के लिये एक 'खास महकमा कायम किया; और मुंशी फैजुल्लाखाँ को अपना मंत्री बनाया । इसी समय से दीवान और बखशी के जबानी हुक्मों से राज्य-कार्य के संचालन की प्रथा उठा दी गई और दीवानी, १. वि० सं० १६२६ की फागुन सुदि १० (ई० स० १८७३ की ८ मार्च ) को गवर्नमेंट
ने महाराज की गद्दीनशीनी का ख़रीता भेजा । 'राजपूताने के गजेटियर' में ई० स० १८७३ की ८ मार्च को महाराजा जसवन्तसिंहजी का राज्याभिषेक होना लिखा है । यह
ठीक नहीं है । ( राजपूताना गजेटियर, भा० ३ ए, पृ० ७४ । ) इसी वर्ष की फागुन सुदि ११ (६ मार्च ) को जयपुर-नरेश रामसिंहजी जोधपुर पाए । २. पहले इस महकमें का नाम ' महकमा भुसाहबत' रखा गया था । परंतु वि० सं० १६३३
(ई० स० १८७६ ) में इसका नाम बदलकर 'महकमा प्रालिया' और वि० सं० १९३५ (ई० स० १८७८) में ' महकमा आलिया प्राइम मिनिस्टर' कर दिया गया । कुछ वर्ष
बाद यह महकमा ‘महकमा खास' कहाने लगा। ३. यह अदालत, वि० सं० १८६६ ( ई० स० १८३६ ) में रैजीडेन्सी कायम होने के समय
खोली गई थी। इसके बाद वि० सं० १६०० ( ई० स० १८४३ ) तक तो इसका काम रेजीडेन्सी (सूरसागर ) में ही होता रहा, परंतु महाराजा तखतसिंहजी के गद्दी बैठने पर इसका दफतर वहां से उठा कर शहर में लाया गया । उस समय इस अदालत के इख्तियारात बढ़ाने के साथ ही अभियोगों की मियाद के नियम भी बनाए गए । इसी साल बामणों, चारणों और पुरोहितों आदि के अभियोगों का निर्णय करने के लिये 'अदालत षट्दर्शन के
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