________________
मारवाड़ का इतिहास
वहां पर जाली सि बनाए जाने की अफवाह फैलने लगी। इस पर सुपरिटेट-पुलिस मिरधा बलदेवराम
और ठाकर-कासिंह इस मामले की जाँच के लिये नियुक्त किए गए । उनकी जांच से वहां पर नकली सिकों के साथ ही जाली नोटों के बनाए जाने के प्रयत्न का भी पता लगा।
परन्तु मीठड़ी-ठाकुर के ताज़ीमी-सरदार होने से पहले मुकद्दमे के संबन्ध के सबूतों वगैरा की जांच की गई और इसके बाद महाराजा साहब की आज्ञा प्राप्त कर इन मुकद्दमों पर विचार करने के लिये एक विचारक-सभा (Tribunal ) कायम की गई ।
इसमें राय साहब लाला टोपनराम ( चीफ जज़ ), पंडित नन्दलाल ( सैशन जज ) और नीबेड़ाठाकुर उमेदसिंह ( हाकिम ) विचारक नियुक्त किए गए । फागुन बदि । (ई. स. १६३५ की २७ फरवरी) से इन मुकद्दमों का विचार प्रारम्भ हुआ और वि० सं० १६६२ की भादों बदि २ (१६ अगस्त) को इस सभा (ट्रिब्यूनल) ने नकली रुपया बनाने के अपराध से मीठड़ी के ठाकुर भोमसिंह को बरी कर दिया । परन्तु जाली नोट बनाने के मामले में उसे दोषी पाया । इसके बाद पुलिस के अपील करने पर आश्विन बदि ५ ( १७ सितंबर ) को दरबार ने, अपने प्रधान मंत्री (Chief A inister ) की सलाह से उपयुक्त फैसलों को नामंजूर कर दिया और कार्तिक बदि ३ (१४ अक्टोबर ) को इन पर फिर से विचार करने के लिये दूसरी विचारक सभा (Tribunal) कायम की । इसमें रायबहादुर कुँवरसेन, ( बार ऐट-लॉ ) प्रेसीडेंट और पंडित औतारकिशन कौल, ( बार-ऐट-लॉ) और ठाकुर हेमसिंह ( सैशन जज ) मैबर थे । इस सभा ने पहले जाली नोट बनाने के मामले पर विचार किया और इसमें ठाकुर भोमसिंह आदि को दोषी पाया। इसके बाद 'इजलास खास' में अपील होने पर 'चीफ मिनिस्टर' कर्नल डी. एम. फील्ड 'होम मिनिस्टर' संखवाय ठाकुर माधोसिंह और 'रिवेन्यू मिनिस्टर' खाँबहादुर नवाब मोहम्मददीन ने मिलकर इस पर फिर विचार किया और अपनी राय लिख कर महाराजा साहब की सेवा में भेज दी । इसके बाद वि० सं० १९६३ की वैशाख सुदि १० (ई. स. १६३६ की १ मई ) को मीठड़ी-ठाकुर को मिली हुई ताज़ीम और कुरब के साथ ही जागीर के गांवों में से ८,३०० रुपये की वार्षिक आय के ४ गाँव हमेशा के लिये जस हो गए । इसके अलावा ठाकुर को और उसके साथ के अन्य अपराधियों को यथानियम दूसरी सज़ाएं भी दी गई।
वि. सं. १६६१ की आश्विन सुदि १ (ई. स. १६३४ की ६ अक्टोबर ) को सर अंक नोइस (Sr Frank Noyce) वायसराय की काउंसल का ( Industries & Labour ) मेंबर जोधपुर आया और चौथे दिन लौट गया।
कार्तिक सुदि ४ (१० नवंबर ) को फौजी-लाट की पत्नी लेडी चेटवुड (Lady Chetwood) जोधपुर आई और अगले दिन लौट गई । इसके बाद फागुन सुदि ८ (ई. स. १६३५ की १३ मार्च) को यह फिर आई।
वि. सं. १६६१ की मैंगसिर सुदि ७ (ई. स. १६३४ की १३ दिसंबर ) को महाराज! साहब ने प्रसन्न होकर रापोराजा अभयसिंह को सोनाईमाजी और रापोराजा हनूतसिंह को मिणियारी नामक गाँव जागीर में दिए और दोनों को द्वितीय श्रेणी के जुडीशल इख़तियारात भी मिले।
वि. सं. १६६१ की माघ सुदि ११ (ई. स. १६३५ को १४ फरवरी ) को हवाई सेना का अफसर सर जौन स्टील जोधपुर आया और उसी दिन लौट गया । इसके बाद फागुन वदि . (२. फरवरी) को यह फिर आया ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com