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मारवाड़ का इतिहास फौजदारी और अपील की अदालतों का फिर से सुधार किया गया ।
नाम से एक नई अदालत कायम की गई । इस समय तक मुकद्दमों का सारा काम ज़बानी होता था। केवल मुद्दई और मुद्दायले का कुछ हाल एक बही में लिख लिया जाता था, और फैसला रोज़नामचे में दर्ज होजाता था। परन्तु इस वर्ष से लिखित
काररवाई शुरू की जाकर मिसलें आदि बनाई जाने लगीं। वि० सं० १६३० ( ई० स० १८७३ ) तक अदालतों का सब काम हिन्दी में होता था, परन्तु वि० सं० १६३१ (ई० स० १८७४) से वह उर्दू में होने लगा । अन्त में वि० सं० १९३७ (ई० स० १८८०) में उ-लेखकों की लेखन-प्रणाली की शिकायतें होने से, उनके स्थान पर फिर से हिन्दी-लेखक रक्खे गए, और महकमों का काम हिन्दी में होने लगा । इससे प्रजा को भी सुभीता होगया ।
पहले दीवानी का काम कविराज मुरारिदान को सौंपा गया था । परन्तु वि० सं० १९३८ (ई० स. १८८१) में मेहता अमृतलाल दीवानी अदालत का हाकिम बनाया गया। वि० सं० १६४२-४३ (ई० स० १८८५-८६) में दीवानी का नया कानून प्रकाशित किया गया । इससे लेन-देन की मियाद (अवधि) और राज की रसम (फ़ीस) आदि का खुलासा होगया।
१. यह महकमा भी पहले, दीवानी अदालत के साथ, रेजीडेन्सी में कायम हुअा था, और फिर उसी के साथ शहर में लाया गया। पहले अक्सर जागीरदार लोग इसके हुक्मों की परवा नहीं करते थे । परन्तु वि० सं० १६०५ (ई० स० १८४८) से पंचोली धनरूप ने इसके लिये उन पर दबाव डाला, और वि० सं० १६०६ की मँगसिर बदि ६ (ई० स० १८४६ की ६ नवम्बर) को उनसे जागीर की एक हज़ार की आमदनी पर ८० रुपये रेख' के भरते रहने का इकरारनामा लिखवा लिया । इस इकरारनामे पर
पौकरन, आउवा, आसोप, नींबाज, रीयां और कुचामन के सरदारों ने दस्तखत किए थे। वि० सं० १६२५ से १६२६ (ई० स० १८६८ से १८७२) तक मारवाड़ में जागीरदारों का उपद्रव रहने के कारण इस अदालत का कार्य फिर शिथिल पड़ गया था। परन्तु महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) ने गद्दी पर बैठते ही इसका प्रबन्ध ठीक करने की आज्ञा दी। इस पर वि० सं० १६३८ (ई० स. १८८१) में मोहम्मद मखदूमबख्श इसका हाकिम बनाया गया, और उसी समय इसके लिये कायदे और कानून भी बना दिए गए। वि० सं० १६४२ (ई० स० १८८५) में इस महकमे की आज्ञाओं का पालन करवाने और नगर का प्रबन्ध करने के लिये पुलिस विभाग की स्थापना की गई; क्योंकि अब तक पुलिस के न होने से उस का काम फौज से ही लिया जाता था । इसके साथ ही फौजदारी के कानून में भी फिर संशोधन किया गया । २. पहले परगनों के हाकिमों के फैसलों को अपीलें दीवान के पास और उस (दीवान)
के फैसलों की अपीलें महाराजा के पास होती थीं । महाराजा मानसिंहजी के समय अपील सुनने के लिये दो कर्मचारी नियुक्त थे । इसके बाद महाराजा तखतसिंहजी ने, वि० सं० १६०० (ई स० १८४३), में, राज्य-भार ग्रहण करने पर स्वयं बैठ कर अपील सुनने का नियम जारी करदिया । परन्तु फिर कुछ काल बाद इस काम के लिये लाला दौलतमन
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