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मारवाड़ का इतिहास
३६. महाराजा सुमेरसिंहजी यह महाराजा सरदारसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १९५४ की माघ वदि ६ (ई० स० १८९८ की १४ जनवरी) को हुआ था । पिता के स्वर्गवास के बाद, वि० सं० १९६८ की चैत्र सुदि ७ (ई० स० १९११ की ५ अप्रेल ) को, आप जोधपुर की गद्दी पर बैठे' । परन्तु उस समय आप की अवस्था करीब १३ वर्ष की थी। इससे राज्य-प्रबन्ध के लिये 'रीसी-काउन्सिल' स्थापित करना निश्चित हुआ । यह देख महाराजा प्रतापसिंहजी ने जोधपुर-राज्य के रीजेंट (अभिभावक ) का पद ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की । परन्तु गवर्नमेंट ने एक ही व्यक्ति को दो रियासतों का प्रबन्ध सौंपना स्वीकार न किया । इस पर महाराजा प्रतापसिंहजी ने ईडर-राज्य का सम्पूर्ण अधिकार अपने दत्तक-पुत्र महाराजा
१. इस अवसर पर मामू के रिश्ते से बूंदी-नरेश, छोटे भाई के रिश्ते से किशनगढ़-नरेश और __ अन्य कई राज्यों के प्रतिनिधि भी उपस्थित हुए थे।
राज-तिलक के पूर्व बूंदी-नरेश ने, मांगलिक कार्य प्रारम्भ करने के लिये, अपने हाथों से महाराजा के मस्तक पर केसर के रंग का साफा बांधा । इसके बाद महाराजा सुमेरसिंहजी (किले में की) भंगार-चौकी पर विराजमान हुए । राज-तिलक का कार्य पूर्ण होने पर किले से १२५ तोपों की सलामी दागी गई । इसके बाद बूंदी और किशनगढ़ के नरेशों के निछावर कर लेने पर राज्य के सरदारों और मुत्सदियों ने नज़रें पेश की । इस कार्य से निपट कर जब नवाभिषिक्त महाराजा वहां से उठे, तब फिर १५ तोपों की सलामी दी गई । (प्रचलित-प्रथानुसार इनमें की १४ तोपें महाराजा के उस समय १४ वें वर्ष में होने की द्योतक और १ तोप अगले वर्ष की मंगल-कामनार्थ थी।) वहां से आप दौलतखाने में जाकर भारत-गवर्नमेंट के प्रतिनिधि ( रैजीडैन्ट ) से मिले । वहीं पर उस ने आपको भारत-गवर्नमेंट की तरफ से समयोचित बधाई दी । इसके बाद नवाभिषिक्त-नरेश ने किले में स्थित चामुण्डा आदि के मन्दिरों में जाकर, अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित, देवी देवताओं के दर्शन किए । इस अवसर पर फिर ११ तोपों की सलामी दी गई । अन्त में प्रापने ज़नाने महलों में जाकर अपनी प्रपितामहियों, पितामहियों और माताओं के सामने नज़रें पेश कीं।
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