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महाराजा सुमेरसिंहजी वि० सं० १९६९ के आश्विन (ई० स० १९१२ के अक्टोबर ) में जोधपुर में 'चीफ़ कोर्ट' की स्थापना का प्रबन्ध किया गया और इसका पहला 'चीफ़ जज' मिस्टर ए. डी. सी. बार ( A. D. C. Barr ), जो अमरावती से बुलवाया गया था, नियुक्त हुआ । इस प्रकार 'चीफ़ कोर्ट' की स्थापना होजाने से 'अपील' और 'तामील' के महकमे उठादिए गए । इसके बाद पौष (ई० स० १९१३ की जनवरी ) में अदालतों में वकालत करनेवाले वकीलों की परीक्षा का प्रबन्ध किया गया ।
माघ वदि १३ (३ फरवरी) को दरभंगा-नरेश और पंडित मदनमोहन मालवीय, 'हिन्दू-यूनीवर्सिटी' के लिये चंदा जमा करने को, जोधपुर आए । इस पर जोधपुरदरबार की तरफ़ से दो लाख रुपये नकद और चौबीस हजार रुपये सालाना शिल्प-कला विज्ञान की शिक्षा (Hardinge Chair of Technology) के लिये देना निश्चित किया गया।
सुमेरसिंहजी के नाम पर 'सुमेर-पुष्टिकर-स्कूल' की स्थापना की गई। उस समय महाराजा साहब के इंगलैंड में होने से उसका उद्घाटन राज्य के रीजेंट महाराजा
प्रतापसिंहजी ने किया। १. वि० सं० १९६६ की चैत्र सुदि १४ ( ई० स० १६१२ की ३१ मार्च ) को मुंशी
हरनामदास वापस लौट गया। २. यह अमरावती में 'सैशन जज था', और गवर्नमेंट से मांग कर जोधपुर में नियत किया
गया था। कुछ दिन बाद ही यह काउंसिल का विशिष्ट ( additional ) मैंबर भी
बनादिया गया। 'चीफ कोर्ट' के अन्य दो जजों के स्थान पर रीयां-ठाकुर विजैसिंह और लक्ष्मणदास सपट नियुक्त किए गए । बाबू उमरावसिंह काउंसिल का सैक्रेटरी बनाया गया। ३. प्रथम श्रेणी में पास होनेवाले वकीलों को मारवाड़-राज्य की प्रत्येक अदालत में और
द्वितीय श्रेणी में पास होने वालों को चीफ कोर्ट के सिवा अन्य अदालतों में वकालत करने का अधिकार दिया गया; तथा उनका मेहनताना भी तय कर दिया गया । हाकिमों के काम की देख भाल के लिये ४ सुपरिन्टेन्डेन्ट नियत किए गए और न्याय-विभाग के प्रत्येक अधिकारी के अधिकार तय कर दिए गए । इसी प्रकार 'मारवाड़-पीनलकोड' आदि की रचना का प्रबन्ध भी किया गया । इसी वर्ष सम्राट के जन्म दिन पर ठाकुर गुमानसिंह खीची को 'राओ बहादुर' की और (जोधपुर रेल्वे के) बाबू छोटमल रावत को
'राय साहब' की उपाधियां मिलीं। ४. आपका नाम रावणेश्वरजी था। ५. इसके अलावा जनता ने भी इस काम में चन्दे से अच्छी सहायता दी थी।
इस वर्ष के आश्विन ( ई० स० १९१२ के अक्टोबर ) में किशनगढ़-नरेश, मैंगसिर ( दिसम्बर ) में बीकानेर-नरेश, माघ (फरवरी १९१३ ) में सैलाना-नरेश और जयसलमेर-नरेशों ने जोधपुर पाकर दरबार का आतिथ्य स्वीकार किया ।
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