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मारवाड़ का इतिहास हो, कार्तिक वदि ११ (१५ अक्टोबर ) को, आपको ब्रिटिश-भारत की सेना का ऑनररी (अवैतनिक) लैटिनेंट नियत किया ।
पहले जागीरदार और कारतकार लोग रुपये की आवश्यकता होने पर जमीन गिरवी (भोगलावे) रख कर कर्ज लेलिया करते थे । परन्तु बाद में एक मुरत रुपया जमा न कर सकने के कारण अक्सर उनके लिये उस जमीन का छुड़वाना असंभव हो जाता था । यह देख कर राज्य ने इस प्रथा की जांच के लिये एक कमेटी नियत करदी । इसने जांच करने के बाद पुराने लेन-देन का फैसला करदिया और आगे के लिये इस प्रथा को उठाकर ऐसे कर्ज की अवधि निश्चित करेंदी । इससे नियत समय के बाद, विना रुपया लौटाए ही, ऐसी जमीन अपने असली अधिकारी के अधिकार में चली जाने लेंगी।
वि० सं० १९७२ की ज्येष्ठ सुदि ५ (ई० स० १६१५ की १७ जून ) को, करीब ६ मास के बाद, महाराजा सुमेरसिंहजी युद्धस्थल से लौट कर बम्बई १. फ्रांस के युद्धस्थल में प्रदर्शित प्रापके उत्साह को देख, वि० सं० १९७१ के माघ
(ई० स० १६१५ की जनवरी) में आप तीसरे स्किनर्स रिसाले के अवैतनिक अफसर बना दिए गए । इसी अंगरेज़ी वर्ष ( १९१५) के प्रारंभ में रियां-ठाकुर विजैसिंह को
'रायो बहादुर' की उपाधि मिली। २. भोगलावे में रुपया देनेवाला विना किसी एवज़ाने के गिरवी रक्खे हुए मकान या ज़मीन
की आमदनी का उपभोग करता है, और कर्जदार रुपयों का सूद नहीं देता । रहन रक्खी हुई वस्तु का किराया या लगान ही सूद का एवजाना समझा जाता है ३. कर्ज देनेवाले के पास असली रुपये से दुगना रुपया पहुँच जाने पर ज़मीन पर से उसका
अधिकार उठा दिए जाने का नियम बनाकर फैसला कर दिया । ४. ऐसे लेन-देन की अवधि अधिक से अधिक २४ वर्ष की करदी गई । इससे कर्ज देनेवाले
के नियत समय तक जमीन की प्राय का उपभोग कर लेने पर विना अन्य किसी एवज़ाने
के ही वह जमीन असली अधिकारी के अधिकार में जाने लगी। ५. इन्हीं दिनों काउंसिल के रिवेन्यू मैबर पं० श्यामविहारी मिश्र ने १०० रुपये भर के सेर
के स्थान में ८० रुपये भर का सेर जारी कर सारे मारवाड़ में एकसा तोन प्रचलित करने का आयोजन किया, परंतु जोधपुर की जनता के विरोध करने के कारण यह विचार स्थगित करना पड़ा । इसीसे इस समय भी मारवाड़ के मिन्न-भिन्न स्थानों में मिन मिन्न मान के सेर प्रचलित हैं और शायद इनसे गांवों के अपढ़ किसानों को असुविधा भी होती है।
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