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मारवाड़ का इतिहास
उटकमंड चले गए । वहीं पर वैशाख सुदि ७ (११ मई ) को जिस समय आप शेर के शिकार के लिये नीलगिरि के घने जंगल (आन-कुट्टी) में घूम रहे थे, उस समय आपका सामना टोले से जुदा हुए एक मस्त जंगली हाथी से हो गया । उसे देखने ही आपके साथ के लोग भाग खड़े हुए। इतने ही में उस मदान्ध हाथी ने आप पर आक्रमण कर दिया । उस समय आपके पास केवल एक भरी हुई दु-नाली बंदूक थी और कारतूस रखनेवाला अनुचर तक पहले ही भाग चुका था । ऐसे संकट के समय भी आपने धैर्य को न छोड़ा और हाथी की तरफ़ मुख किए हुए ही आप पीछे हटने लगे । परन्तु जब वह हाथी बहुत ही पास आ गया, तब आपने उसके मस्तक को लक्ष्य कर एक गोली चलाई । यद्यपि इसकी चोट से एकवार तो वह मस्त हाथी जहां का तहां ठिठक रहा तथापि उसी समय पीछे वृक्ष का तना आ जाने से महाराजा साहब के ठोकर खाकर गिर पड़ने से उसने आगे बढ़कर आप पर आक्रमण कर दिया । ऐसे समय आपके पुण्य-प्रताप ने आपकी सहायता की; जिससे आप उसके दोनों विशाल दांतों के बीच आगए । हाथी की सूंड आपकी गोली से पहले ही क्षत-विक्षत हो चुकी थी, इसलिये वह उससे काम न ले सका । इसी समय आपके छोटे भ्राता महाराज अजित सिंहजी और महाराजा सर प्रतापसिंहजी के दौहित्र ( बेड़ा-ठाकुर ) पृथ्वीसिंह ने आपके न दिखाई देने के कारण जैसे ही इधर-उधर नजर दौड़ाई वैसे ही आपको उस अवस्था में देखा । इस पर वे दोनों शीघ्र ही पलट पड़े और उन्होंने अपनी-अपनी दु-नाली बंदूकों से दो-दो गोलियां चलाकर उस हाथी के मस्तक को विदीर्ण कर दिया । इन करारी चोटों के लगने से वह मदान्ध हाथी घबरा गया और महाराजा साहब को छोड़ कर चिघाड़ता हुआ भा चला । महाराजा साहब ने इस आकस्मिक आक्रमण से सम्हलते ही अपने साथवालों को उस हाथी का पीछा करने की आज्ञा दी । इस पर तत्काल उन्होंने उसका अनुसरण किया और एक नाले के पास पड़ा पाकर उसे समाप्त कर दिया । इस प्रकार इस महान् संकट के समय ईश्वर की कृपा से आपकी रक्षा हुई। इसके बाद आप गरमी की मौसम उटकमंड में बिताकर कर वदि ९ (३० सितंबर) को जोधपुर लाट आए ।
वैशाख सुदि २ ( १३ मई) को मारवाड़ की पुलिस ने डकैत रणजीतसिंह और जवाहरसिंह का वीरता से सामना कर उन्हें मार डाला। कई वर्षों से सीकर-राज्य के भूरसिंह नामक डकैत ने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, अलवर, नाभा,
१. आषाढ सुदि ३ ( १३ जुलाई ) को मिस्टर विनगेट ( R E. L. Wingate, I. C. S.) यहां का रेज़ीडेंट नियुक्त हुआ ।
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