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मारवाड़ का इतिहास अध्यक्षता में एक राज-प्रतिनिधि-सभा (रीजैन्सी काउंसिल ) नियत की गई। उस समय तक महाराजा प्रतापसिंहजी युद्धस्थल से लौट कर जोधपुर आगए थे, और कार्तिक ( नवम्बर) में दिल्ली जाकर वायसराय से भी मिल चुके थे। इसी से
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इस राज-तिलकोत्सव के समय किशनगढ़-नरेश भी उपस्थित थे । इससे उनके निछावर कर लेने पर अन्य महाराजों, सरदारों और राज-कर्मचारियों ने अपनी-अपनी नज़रें पेश कीं। कुछ दिनों बाद ईडर और रतलाम के नरेशों ने जोधपुर आकर आपसे मुलाकात की। ( इसी प्रकार जामनगर-नरेश ने भी ( ई० स० १६१६ में ) दो वार आकर आपका आतिथ्य ग्रहण किया ।)
वि० सं० १६७५ की आश्विन सुदि । ( ई० स० १६१८ की , अक्टोबर ) को भारत सरकार की तरफ से मित्र-राज्यों की विजय और बलगेरिया के प्रात्म-समर्पण के उपलक्ष में खुशी मनाना निश्चित हुा । परन्तु उस समय मारवाड़ में महाराजा सुमेरसिंहजी के स्वर्गवास का शोक होने से यहां पर यह उत्सव आश्विन सुदि १४ ( १८ अक्टोबर ) को मनाया गया । उस रोज़ किले से १०१ तोपों की सलामी दागी गई, सेना की कवायद हुई, मंदिरों और मस्जिदों में प्रार्थनाएँ की गई और गरीबों को अन्न-वस्त्र और विद्यार्थियों को मिठाई दी गई ।
कार्तिक सुदि ११ (१४ नवम्बर ) को मारवाड़ में जर्मनी के अस्थायी सन्धि स्वीकार करने की खुशी मनाई गई । उस रोज़ फिर मन्दिरों और मस्जिदों में प्रार्थनाएँ की गई और किले से १०१ तोपें चलाई गई। इसके बाद मँगसिर बदि ६ (२७ नवम्बर ) को 'ब्रिटिश-गवर्नमैन्ट' की विजय के उपलक्ष में उत्सव मनाया गया । इस अवसर पर भी किले से १०१ तोपें छोड़ी गई, मन्दिरों
आदि में प्रार्थनाएँ की गई, गरीबों को अन्न-वस्त्र और विद्यार्थियों को मिठाई दी गई, सम्राट के चित्र का जुलूस निकाला गया और रात को रौशनी की गई । इसके दूसरे दिन सैनिकों को भोज दिया गया । तीसरे दिन स्कूलों के विद्यार्थियों ने खेल दिखलाए और इसके बाद खिलाड़ियों को इनाम दिए गए।
वि० सं० १९७६ की आषाढ सुदि १ ( ई० स० १९१६ की २८ जून ) को स्थायी सन्धि पर हस्ताक्षर हो जाने से सावन बदि ७ (१६ जुलाई ) को फिर किले से १०१ तोपें दागी गई, ८४ कैदी छोड़े गए, विद्यार्थियों को मिठाई और गरीबों को भोजन बांटा गया । १. वि० सं० १६७५ की कार्तिक सुदि ३ (ई• स० १६१८ की ६ नवम्बर ) को, कर्नल
विंढम (C. J. Windham) के कोटा जाने पर भारत सरकार ने, खास तौर से चुनकर, मिस्टर ऐल• डब्ल्यू. रेनॉल्ड्स (L. W. Reynolds, I. C. S., C. I. E., M. C.) को यहां का रैजीडैन्ट ( अपना प्रतिनिधि ) नियुक्त किया था। परन्तु उसके आने तक, करीब २० दिनों के लिये, कर्नल मैकर्सन ( A. B. Macpherson ) रैजीडैन्सी के कार्य की देख भाल करता रहा । (वि० सं० १६७८ की चैत्र सुदि ७ (ई. स. १९२१ की १४ अप्रेल ) को मिस्टर रेनॉल्ड्स के ६ महीने की छुट्टी जाने पर, उतने समय के लिये, उसका काम लेफ्टिनेंट कर्नल सेंट जौन (H. B. St. John ) को सौंपा गया ।)
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