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महाराजा सरदारसिंहजी इस (वि० सं० १९५४) वर्ष के आश्विन (ई० स० १८९७ के सितंबर) में हिन्दुस्तान की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर उपद्रव उठ खड़ा हुआ। इस पर स्वयं महाराज प्रतापसिंहजी, जोधपुर के रिसाले को लेकर, गहमंदों पर की चढ़ाई में शरीक हुए और वहां से लौट कर, तिराह पर चढ़ाई करनेवाली अंगरेज़ी-सेना के साथ जाने को, रावलपिंडी पहुँचे । तिराह में, एक रात को शत्रु की चलाई, एक गोली अचानक इनके हाथ में आ लगी । परंतु आपने इसे प्रकट करना आवश्यक न समझा और अपने हाथ से ही घाव पर पट्टी बांध ली। कुछ समय बाद जब यह बात प्रकट हुई, तब जनरल लॉकहार्ट ने अपने खरीते में आपके धैर्य की बड़ी प्रशंसा की । युद्ध समाप्त होने पर आप सरदाररिसाले के साथ जोधपुर लौट आए । आपकी इस सहायता से प्रसन्न होकर महारानी विक्टोरिया ने कुछ काल बाद आपको 'कंपेनियन ऑफ बाथ' और 'ऑनररी कर्नल' बना दिया। __इस वर्ष की माघ वदि ६ ( १८९८ की १४ जनवरी ) को प्रथम महाराज-कुमार सुमेरसिंहजी का जन्म हुआ । इससे राज्य भर में उत्सव मनाया गया ।
वि० सं० १९५४ की फागुन वदि १३ ( ई० स० १८९८ की १८ फरवरी ) को, १८ वर्ष की अवस्था हो जाने पर, राज्य का सारा अधिकार महाराजा सरदारसिंहजी को सौंप दिया गया और इसी समय गवर्नमेंट ने मालानी परगने का फ़ौजदारी अधिकार भी जोधपुर-दरबार को लौटा दिया ।
१. यह घटना ई० स० १८९८ की है । इस ( C. B. ) का पदक आपको लॉर्ड कर्जन ने,
वि० सं० १६५६ की मँगसिर सुदि ७ ( ई० स० १८६६ की ६ दिसम्बर ) को, आगरे
के दरबार में भेट किया था । २. इस अवसर पर जोधपुर के किले से १२५ तोपें दागी गई। ३. इस अवसर पर बीकानेर-नरेश गंगासिंहजी भी उत्सव में सम्मिलित हुए थे।
इस समय से सारे 'सैक्रेट्रियट' की देख-भाल करने के लिये पंडित सुखदेवप्रसाद काक 'मुसाहिब आला' का 'सैक्रेटरी' नियत किया गया । ४. गवर्नमेंट ने मालानी का दीवानी अधिकार वि० सं० १६४८ (ई० स० १८६१) में
ही जोधपुर दरबार को लौटा दिया था। इस समय तक पुरानी फ़ौजदारी-मिसलों के तय हो जाने और राज्य के प्रबन्ध में समुचित सुधार हो जाने से, वहां का फौजदारी अधिकार भी जोधपुर-राज्य को सौंप दिया। उन दिनों पण्डित माधोप्रसाद गुर्टू उक्त प्रान्त का सुपरिन्टेंडेंट था।
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