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मारवाड़ का इतिहास
प्रारम्भ ) में आप 'प्रिंस ऑफ वेल्स' से मिलने रावलपि डी गए ।
इस वर्ष की पौष वदि ( ई० स० १६०५ के दिसम्बर) में जयसलमेर - नरेश और चैत्र वदि (ई० स० १९०६ के मार्च ) में नाभा - नरेश हीरासिंहजी जोधपुर आए । इस पर राज्य की तरफ़ से उनका यथोचित स्वागत किया गया ।
इसी वर्ष महाराजा ने परगनों का दौरा कर प्रजा के हित के लिये खोले गए कामों का निरीक्षण किया और ख़ाँबहादुर साहबजादा हमीदुज्ज़फ़रख़ाँ के अलवर चले जाने पर मुंशी रोड़ामल को महकमे - खास का ऐसिस्टैंट और 'जुडशल - सेक्रेटरी' बनाया ।
कार्तिक (अक्टोबर ) में मिस्टर होम नौकरी से अलग (रिटायर) हुआ और उसकी जगह मिस्टर टॉड ( R. Todd ) यहां की रेल्वे का मैनेजर बनाया गया ।
वि० सं० १९६३ की कार्तिक सुदि १४ ( ३१ अक्टोबर ) को महाराजा की आज्ञा से जोधपुर के पैसे का तोल घटाकर आधा करदिया गया । इसके बाद मँग
दि १ ( १७ नवम्बर) से महाराजा सरदारसिंहजी ने फिर राज्य कार्य की देखभाल शुरू की । परन्तु राजसभा ( केबिनेट) की कार्रवाई रेज़ीडेंट की अध्यक्षता में ही होती रही ।
१. यही बाद में सम्राट् जॉर्ज पंचम के नाम से बादशाह हुए ।
२. आप मँगसिर सुदि ७ ( ३ दिसम्बर) को रावलपिंडी गए थे और मँगसिर सुदि १५ ( ११ दिसम्बर) को वहां से लौट कर आए ।
३. पहले जोधपुर में दशहरे पर काग़ज़ का रावन बनाया जाता था और बाद में महाराज प्रतापसिंहजी ने उसका पत्थर का धड़ बनवा दिया था । परन्तु महाराजा सरदारसिंहजी की आज्ञा से, वि० सं० १६६३ ( ई० स० १६०६ ) के दशहरे से वह फिर पूरा का पूरा काग़ज़ का बनाया जाने लगा ।
माशे का माशे का
४. महाराजा भीमसिंहजी के समय २० पैसा बनता था और बाद में १८ माशे का बनने लगा । परन्तु अब से वह ६ करदिया गया। साथ ही एक आने के ४ पैसे का भाव भी नियत हो गया। पहले इसका भाव तांबे के भाव के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था और यह एक रुपये के ४६ से ४८ पैसे ( २३ से २४ टके ) तक होजाता था ।
५. एचिसन् की 'ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमेंट्स ऐण्ड सनट्स' ( भा० ३, पृ० १२१ ) में लिखा है कि ई० स० १६०५ में महाराजा को कुछ अधिकार वापस दिए गए और इसके बाद ई० स० १६०८ में उन्हें करीब करीब पूरे अधिकार सौंप दिए गए ।
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