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मारवाड़ का इतिहास
आषाढ सुदि १४ (८ जुलाई ) को दूसरे महाराज - कुमार उम्मेदसिंहजी का जन्म हुआ ।
इसी वर्ष के भादों (अगस्त) में महाराजा साहब 'इम्पीरियल केडेट कोर' की शिक्षा समाप्त कर स्वास्थ्य-सुधार के लिये पचमरी चले गए। इसलिये राज्य कार्य का संचालन पश्चिमी राजपूताने के रैजीडैंट लैफ्टिनेंट कर्नल जैनिंग्स की देख भाल में ही होता रहा ।
इसी बर्ष रीयां-ठाकुर विजैसिंह 'कन्सलटेटिव काउंसिल' का मैंबर बनाया गया, सरदार शंशेरसिंह पुलिस के प्रबंध के लिये बुलवाया गया और कैटिन् पिन्ने के स्थान पर कैढिन् हेग (P. B. Haig) महाराजा का 'मैडिकल ऐडवाइज़र' नियुक्त हुआ ।
वि० सं० १९६१ के श्रावण ( ई० स० १९०४ के अगस्त ) में गाड़ियों आदि के सुभीते के लिये, फुलेलाव तालाब के पास का पहाड़ काट कर, नई सड़क बनाने
१. इस खुशी में किले से १२५ तोपों की सलामी दाग़ी गई ।
२. उस समय महाराजा की सरलता, महाराजा के मुंह लगे लोगों की स्वार्थपरता और प्रधान मंत्री की अहम्मन्यता के कारण राज्य में षड्यंत्र चल रहा था, और यही बाद में महाराजा के पचमरी जाने का कारण हुआ ।
३. वि० सं० १६६१ की चैत्र सुदि १२ ( ई० स० १६०४ की २८ मार्च) को मुसलमानों नेताजिये निकालते समय राज्य की आज्ञा का उल्लंघन करना चाहा । परन्तु समय पर सैनिक-प्रबन्ध होजाने से यद्यपि वे उपद्रव न कर सके, तथापि उन्होंने अपना हट प्रकट करने के लिये केवल एक ताज़िया ही निकाला ।
इस (रैज़ीडेंट) ने महाराज अर्जुनसिंहजी के कृपापात्र मच्छूखाँ की उद्दण्डता से अप्रसन्न होकर उसे मारवाड़ से चले जाने की आज्ञा दी थी । परन्तु जब उसने इसकी परवा न की, तब उसे पकड़ने का हुक्म दिया गया । इस कार्य में बाधा देने के कारण महाराज अर्जुनसिंहजी राजकीय सेना के सेनापति ( कमाण्डर इन चीफ) के पद से हटाए गए और उनकी जागीर का बीजवा नामक गांव, जो इस पद के पीछे मिला था, हमेशा के लिये और बग्गड़ नामक गांव कुछ दिन के लिये ज़ब्त कर लिए गए। इसके बाद वि० सं० १६६२ की फागुन सुदि ८ ( ई० स० १६०५ की १४ मार्च) को मच्छूखाँ, उसको पकड़ने को भेजे गए, रिसाले वालों के हाथ से मारा गया, और ठाकुर हेमसिंह की अध्यक्षता में गई सेना ने बींजवे पर, बिना रक्त-पात के ही, अधिकार कर लिया ।
४. यह पुलिस का प्रबन्ध वि० सं० १६६२ की भादों बदि ५ ( ई० स० ११०५ की २० अगस्त ) से किया गया था और सरदार शशेरसिंह पंजाब गवर्नमेंट से मांगकर लिया गया था ।
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