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मारवाड़ का इतिहास
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इसी वर्ष स्थानीय जसवंत कॉलेज में 'बी. ए. तक की पढ़ाई का प्रबन्ध होजाने से जनता को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा होगई । पहले चोरी गए माल के मिल जाने पर उसका चौथा हिस्सा राज्य में जमा हो जाता था । परंतु इस वर्ष से यह प्रथा उठादी जाने से प्रजा का बड़ा उपकार हुआ । इस वर्ष के 'ट्रेवर-फेयर' में बीकानेर और कोटा के महाराजा, खेतड़ी के राजा और जूनागढ़ के साहबजादा आदि कई गण्यमान्य व्यक्ति एकत्रित हुए थेरे वि० सं० १९५४ ( ई० स० १८९७) में महारानी विक्टोरिया के ६० वर्ष राज्य कर चुकने के उपलक्ष में लंदन में 'हीरक जुबली' का उत्सव मनाया गया । इस पर महाराज प्रतापसिंहजी वहां जाकर ' इम्पीरियल सर्विस-ट्रप्स ' ( देशी राज्यों की सेनाओं) की ओर से उत्सव में शरीक हुए। वहीं पर आषाढ बदि = ( २२ जून ) को आपको जी. सी. ऐस. आई. का पदक मिला । साथ ही आपकी योग्यता को देख ‘कैम्ब्रिज-यूनीवर्सिटी' ने आपको ऑनररी एल. एल. डी. की उपाधि दी ।
के लिये, अजमेर के मे कॉलेज में भेज दिए जाते थे । परंतु यह नया स्कूल गरीब राजपूतों के बालकों की शिक्षा के लिये खोला गया था ।
१. इसी वर्ष ( वि० सं० १६५३ ) के चैत्र ( ई० स० १८६७ के मार्च ) में महाराज प्रतापसिंहजी, चांदपोल दरवाज़े के बाहर शिवबाड़ी में किए गए, श्रीमाली ब्राह्मणों के उत्सव में पधारे और उनके जातीय स्कूल ( पाठशाला) के लिये राज्य की तरफ से ५,००० रुपये दिए जाने की घोषणा की ।
इसी प्रकार वि० सं० १६५४ के भादों ( अगस्त ) में महाराज प्रतापसिंहजी ने ओसवालों के स्कूल (विद्यालय ) का निरीक्षण कर, उसके लिये ७,००० रुपये राज्य की ओर से और २,००० रुपये अपनी तरफ से देने का हुक्म दिया ।
कायस्थ-स्कूल का उद्घाटन ( वि० सं० १६४४ = ई० स० १८८७ में ) आपके हाथ से होने के कारण उसका नाम 'सर प्रताप स्कूल' रक्खा गया ।
इसी प्रकार अन्य अनेक जातीय स्कूलों को भी राज्य से सहायता दी गई ।
२. यह मेला वि० सं० १९५३ के पौष ( ई० स० १८६६ के दिसम्बर) में हुआ था । परंतु इस साल मवेशी बहुत कम आए। इस अवसर के सिवा इस वर्ष दो बार बीकानेर - नरेश नं, दो बार जयसलमेर- नरेश ने और एकबार खेतड़ी-नरेश ने जोधपुर आकर महाराज का आतिथ्य ग्रहण किया ।
३. आषाढ ( जून) में यह उत्सव जोधपुर में भी बड़े समारोह के साथ मनाया गया और इसकी यादगार में नगर वासियों के लिये जो पानी की सुविधा का आयोजन किया गया था, उसका नाम "विक्टोरिया- जुबिली - वॉटर वर्क्स" रक्खा गया ।
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