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महाराजा सरदारसिंहजी से, प्रतिवर्ष के अनुसार, 'ट्रेवर - फेयर' ( मवेशियों का मेला) लगा । इसके साथ ही पोलो और सूअर के शिकार का प्रबन्ध होने से पटियाला, धौलपुर, कोटा, रतलाम और सैलाने के राजा और बहुत से अंगरेज अफ़सर भी यहां आएँ ।
इस वर्ष कुछ परगनों में अकाल होने के कारण राज्य की तरफ़ से वहां के अकाल पीड़ितों की सहायता का प्रबन्ध किया गया ।
कुछ काल बाद राज-कार्य का अनुभव प्राप्त करवाने के लिये 'हवाले' का सारा काम महाराजा के तत्वावधान में किया जाने लगा और सप्ताह में एक या दो वार आप 'काउंसल' में भी बैठने लगे ।
मँगसिर बदि ४ (२४ नवंबर) को भारत का वायसराय लॉर्ड ऐल्गिन् जोधपुर आया । महाराज की तरफ़ से उसका यथोचित सत्कार किया गया और उसी दिन सायंकाल को उसके हाथ से तलहटी के महलों में 'जसवन्त फीमेल हॉस्पिटल' नामक जनाने अस्पताल का उद्घाटन करवाया गया। दूसरे दिन स्वयं महाराजा के सेनापतित्व में सरदार रिसाले ने अपनी कवायद दिखलाई । उस समय की सवारों की फुर्ती और चतुरता को देख लॉर्ड एल्गिन बहुत प्रसन्न हुआ । इसके बाद मँगसिर बदि ६ (२६ नवंबर) को उसी के हाथ से 'ऐल्गिन् राजपूत -स्कूल' का उद्घाटन करवाया गया ।
१. यह मेला वि० सं० १६५३ की वैशाख बदि १ ( ई० स० १८६६ की ३० मार्च ) तक रहा । उस समय मवेशियों पर लगने वाला निसार का कर माफ करदिया गया था और उत्तम पशुओं के लिये उनके स्वामियों को इनाम भी दिया गया था ।
२. इस अवसर पर पोलो में विजय प्राप्त करने से उसके लिये रक्खा गया उपहार धौलपुर के महाराना को अर्पण किया गया ।
३. इसी वर्ष कचहरी ( जुबली कोर्ट्स ) के बाज़ के दोनों भुज बनने प्रारम्भ हुए और स्टेशन से शहर और कचहरी तक बैलों की ट्राम का, आटा पीसने की पवन चक्की का और महाराजा साहब के बंगले पर बिजली की रौशनी का प्रबन्ध करना निश्चित हुआ । साथ ही चौपासनी का बड़ा ताल भी तैयार करवाया गया ।
४. वि० सं० १६५३ की प्राश्विन सुदि ४ ( ई० स० १८६६ की १० अक्टोबर) को ऋतुओं में होने वाले दैनिक परिवर्तनों की जांच के लिये नगर के बाहर एक निरीक्षण - शाला ( ऑनज़र - वेटरी) खोली गई ।
५. इसी वर्ष आपने प्रजा की हालत जानने के लिये महाराज प्रतापसिंहजी को साथ लेकर पाली परगने का दौरा किया ।
६. राजपूत सरदारों के बालकों की प्राथमिक शिक्षा के लिये पहले ही 'पाउलट - नोबल्स स्कूल' स्थापित हो चुका था और यहां की शिक्षा समाप्त कर लेने पर वे, उच्च शिक्षा प्राप्त करने
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