________________
३५. महाराजा सरदारसिंहजी
यह महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) के पुत्र थे और उनके स्वर्गवास के बाद, वि० सं० १९५२ की कार्तिक सुदि ७ (ई० स० १८९५ की २४ अक्टोबर ) को, जोधपुर की गद्दी पर बैठे'। इनका जन्म वि० सं० १९३६ की माघ सुदि १ ( ई० स० १८८० को ११ फरवरी ) को हुआ था।
राव जोधाजी के इतिहास में लिखा जा चुका है कि जिस समय उन्होंने मेवाड़ की सेना को हराकर मंडोर पर अधिकार किया था, उस समय उनके बड़े भ्राता अखैराज ने, उनकी वीरता और योग्यता को देख, तत्काल अपने अंगूठे के रक्त से, उनके ललाट पर राज-तिलक लगा दिया था । तब से राज-तिलक लगाने की वही प्रथा मारवाड़ में चली आती थी। परन्तु महाराजा सरदारसिंहजी के समय इनके चचा महाराज प्रतापसिंहजी ने वह प्रथा उठादी । इसीसे बगड़ी के ठाकुर (बैरीसाल ) ने इनका
-...-..---
१. इस अवसर पर मंदियाड़ के बारहठ ने नवाभिषिक्त-महाराजा को आशीर्वाद दिया, और
किले से १२५ तोपों की सलामी दागी गई । इसके बाद महाराजा सरदारसिंहजी के 'दौलतखाने में जाने पर उपस्थित नरेशों और नरेशों के प्रतिनिधियों ने क्रमशः निछावरें और नज़रें पेश कीं । अन्त में महाराज 'कँवर-पदे के महल' में जाकर गवर्नमेंट के प्रतिनिधि ऐक्टिंग रैजीडेंट मिस्टर मार्टण्डल में मिले । उस दिन समय अधिक होजाने से मारवाड़ के सरदारों और राज-कर्मचारियों आदि की नज़रें दूसरे दिन 'राईकाबाग'
नामक महल में पेश की गई। माघ बदि (ई० स० १६६६ की जनवरा) में महाराजा सरदारसिंहजी अपने चचा महाराज प्रतापसिंहजी के साथ जयपुर गए और फागुन बदि (फरवरी ) में रतलाम जाकर वहां के नरेश के विवाह में सम्मिलित हुए ।
इस वर्ष जयसलमेर-नरेश ने अपनी अजमेर-यात्रा के सम्बन्ध में दो वार जोधपुर में ठहर कर महाराज का आतिथ्य स्वीकार किया ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com