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मारवाड़ का इतिहास
कहते हैं कि इसी प्रकार आपने लाहोर के डी. ए. वी. कॉलेज के लिये १०,००० रुपया देने के अलावा वि० सं० १९४५ में स्वामी भास्करानन्द के यूरोप और अमेरिका में जाकर आर्यसमाज के सिद्धान्तों का प्रचार करने का सारा खर्च भी दिया था ।
महाराजा जसवन्तसिंहजी के महाराज - कुमार का नाम सरदारसिंहजी था ।
महाराज ने अनेक गांव जागीर के तौर पर देने के अलावा कुछ गांव दान में भी दिए थे ।
१. आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती जोधपुर ग्राकर, महाराज के पास, कुछ समय तक रहे थे ।
२. आपके दो रावराजा थे - १ सवाईसिंह और तेजसिंह (द्वितीय) ।
३. महाराजने १ खाती खेड़ा ( पाली परगने का ) राज्य के धर्म के महकमे को, २ रावलास (मेड़ते परगने का) भों को और ३ ढींकाई (जोधपुर परगने का ) चारणों को दिया था ।
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