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महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) रावराजा तेजसिंह, मेहता विजयसिंह, और पंडित शिवनारायण काक उसके मेंबर ( सभासद ) और मुंशी हरदयालसिंह उसका सेक्रेटरी ( मंत्री ) बनाया गया।
पहले अक्सर राज्य की तरफ़ से सरकारी ( खालसे के ) गांवों की फसल के लगान का ठेका ( इजारा) देदिया जाता था। इससे प्रजा को बहुत असुविधा होती थी। यह देख महाराज ने इस प्रथा को उठादिया। इसी के साथ मारवाड़ की नाप (सर्वे) की जाकर 'बीघोड़ी' (प्रति बीघे के हिसाब से लगान वसूली की प्रथा ) बांधदी' गई । इससे पहले जो जमीन का लगान नाज के रूप में लिया जाता था, वह अब से रुपयों के रूप में लिया जानेलगा।
पहले राज्य के आय-व्यय का सारा हिसाब सेठों के यहां रहता था । इस से हिसाब की असुविधा के साथ ही राज्य को नुकसान भी होता था । इसलिये वि० सं० १९४२ की वैशाख वदि २ ( ई० स० १८८५ की १ अप्रेल ) को राज्य के खजाने की स्थापना कर उसके नियम आदि बनाए गएँ। इससे राज्य को बहुत फायदा हुआ।
इसी वर्ष गवर्नमैट ने जोधपुर दरबार के साथ फिर एक अहदनामा किया। इसके अनुसार यद्यपि मेरवाड़े के २१ गांवों पर जोधपुर-दरबार का ही स्वामित्व रक्खा गया, तथापि वहां का प्रबन्ध हमेशा के लिये गवर्नमैन्ट के अधिकार में चला गयो ।
१. यह कार्य वि० सं० १६६२ (ई० स० १६०५) में समाप्त हुआ था। २. पहले राज्य के रुपयों का हिसाब अजमेर के सेठ समीरमल के यहां रहता था और जब
रुपयों की आवश्यकता होती थी, तब वे उसके यहां से मँगवा लिए जाते थे । इसी प्रकार जब लगान आदि के रुपये आते थे, तब वे उसके पास भेज दिए जाते थे। इस प्रबन्ध के कारण जोधपुर-राज्य को पिछले ११ वर्षों में करीब १८,५०,६३५ रुपये सूद के देने पड़े। परंतु राजकीय खज़ाने के खुल जाने से वि० सं० १६४२ ( ई० स० १८८५-१८८६) में राज्य की प्राय ३६,८२,६०४॥-)। और व्यय ३४,५१,०६३॥1॥
होकर पांच लाख से अधिक रुपयों की बचत हुई। ३. इसी साल १ दीवानी, २ गवाही, ३ स्टाम्प, ४ हलफ़, ५ जेल ६ ठगी-डकैती के अभि
योगों, ७ परगनों के हाकिमों के अधिकारों, ८ हाकिमों की परीक्षाओं, ६ हाकिमों के
दरजों और उनकी तरक्की और १० नायब हाकिमों आदि के कानून बनाए गए। ४. ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैटस ऐण्ड सनदस, भा० ३, पृ० १६८-१६६ । ५. गवर्नमेंट ने पहले पहल वि० सं० १८८० ( ई० स० १८२४ ) में इन गांवो को, वहां
के मीणा और मेर जाति के लोगों के उपद्रव को शांत करने के लिये लिया था और उस समय से ही वहां पर गवर्नमेंट का प्रबन्ध चला आता था।
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