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महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) इसी अवसर पर मुंशी फैजुल्लाखाँ को 'खाँ बहादुर' की, मेहता विजयमल को राय बहादुर' की, और कुचामन, खैरवा तथा पौकरन के ठाकुरों को 'राओ बहादुर' की उपाधियां मिलीं । इसके बाद महाराज लौटकर जोधपुर चले आए।
वि० सं० १९३४ (ई० स० १८७७) में वर्षा न होने से मारवाड़ में भीषण अकाल पड़ा । ( उस समय देश में रेल के न होने से नाज का बाहर से मँगवाना कठिन था । ) परन्तु महाराज ने, प्रजा के हित के लिये, इधर-उधर का सारा नाज, जिस भाव से मिल सका उसी भाव से खरीदवा कर, राज्य की तरफ़ से एक रुपये का आठ सेर के भाव से बिकवाया । इससे प्रजा को बड़ी सुविधा हुई।
वि० सं० १९३४ (ई० स० १८७७) में प्रथम महाराज-कुमार का जन्म हुओ ।
वि० सं० १९३५ ( ई० स० १८७८) में महाराज ने, अजमेर से आबू को जानेवाली, 'राजपूताना मालवा रेल्वे' की शाखा ( लाइन ) के लिये मारवाड़ की सरहद में की आवश्यक-भूमि विना किसी प्रकार का मूल्य लिए ही देदी।
इसी वर्ष गवर्नमेंट ने महाराज की सलामी की तोपें बढ़ा कर २१ करदी ।
इस वर्ष के भादौं (ई० स० १८७८ के अगस्त ) में महाराज ने अपने छोटे भ्राता महाराज प्रतापसिंहजी को 'प्राइम मिनिस्टर' बनाकर राज्य-कार्य को आधुनिक ढंग पर चलाने का प्रबन्ध किया और महाराज किशोरसिंहजी को 'कमाण्डर इन चीफ़' का कार्य सौंपा। ___ इसी वर्ष महाराज की तरफ से उनके छोटे भ्राता महाराज प्रतापसिंहजी अंगरेजों की मिशन के साथ काबुल गए । उनकी वहां की कार-गुज़ारी से प्रसन्न होकर महारानी ने उन्हें सी. एस. आइ. की उपाधि से भूषित किया ।
वि० सं १९३६ की ज्येष्ठ बदि ३ (ई० स० १८७६ की ८ मई ) को महाराजा और अंगरेजी सरकार के बीच फिर एक अहदनामा हुआ । इसके अनुसार डीडवाना,
१. कहीं-कहीं एक रुपये का दस सेर गेहूँ और जौ बिकवाना लिखा मिलता है । २. इस अवसर पर जयपुर-नरेश भी जोधपुर आकर उत्सव में सम्मिलित हुए थे । परन्तु
शीघ्र ही इन महाराज-कुमार का देहान्त हो गया । ३. इसी वर्ष "इज़लाय गैर" ( Foreign Deptt.) की स्थापना की गई, और यह काम महाराजा
साहब के 'प्राइवेट सेक्रेटरी' कश्मीरी पंडित शिवनारायण काक को सौंपा गया। ४. ए कलैकशन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १५६-१६४ । यह संधि
वास्तव में वि० सं० १६३५ की माघ वदि ११ (ई० स० १८७६ की १८ जनवरी) को की गई थी।
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