________________
महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) बागियों को सजा दी। इससे जयपुर की तरफ़ की सरहद का झगड़ा मिट गया । इसी साल राजकीय सेना ने सराई जाति के मुसलमान लुटेरों पर आक्रमण कर उन्हें हराया । उनमें से बहुत से इस आक्रमण में मारे गए और उनके गांव बोयात्री पर राज्य का अधिकार हो गया ।
'कोर्ट-सरदारान' में नियुक्त उपर्युक्त सरदारों के समय पर विचार में संयुक्त न होने के कारण बहुधा काम में गड़-बड़ होती थी, इससे वि० सं० १९४० के भादों ( ई० स० १८८३ के सितम्बर ) में, गवर्नमेंट से मांग कर, मुंशी हरदयाल सिंह को इस महकमे का अध्यक्ष बनाया और उसे इसके कार्य-संचालन का पूरा-पूरा अधिकार दे दिया।
इसी वर्ष रावराजा तेजसिंह (प्रथम ) नायब 'मुसाहिब आला' बनाया गया।
उन दिनों मारवाड़ में मीणे, भील, बावरी, आदि जुरायम-पेशा कौमों का फिर से बड़ा उपद्रव होने से उनको खेती के काम पर लगाने के लिये, वि० सं० १९४० के आषाढ (ई० स० १८८३ के जुलाई ) में, परगनों के हाकिमों और सुपरिंटैंडैटों के पास खास तौर से आज्ञाएं भेजी गईं और साकड़े और सनवाड़े के लूट खसोट करने वाले राजपूतों को मार्ग पर लाने के लिये मुंशी फैजुल्लाखाँ रवाना किया गया। उसने वहां जाकर उनके
१. कहीं कहीं इसका नाम भवातड़ा लिखा मिलता है । २. यह पहले पंजाब में 'ऐकस्ट्रा ऐसिस्टैंट कमिश्नर' था । ३. कुछ समय बाद पंडित जीवानंद इस अदालत का नायब अफ़सर बनाया गया । ४. इसी वर्ष यह मुसाहिब-याला का होम सैक्रेटरी' बनाया गया । महाराजा साहब के 'प्राइवेट
सैक्रेटरी का काम पंडित शिवनारायण काक करता था और पौकरन ठाकुर मंगलसिंह प्रधान तथा राय बहादुर मेहता विजयमल दीवान था । हवाले ( Land Revenue) और रेख
आदि की राज्य की आमदनी का तथा जमा-खर्च का प्रबन्ध दीवान की निगरानी में
होता था। ५. वि० सं० १६४० ( ई० स० १८८३-८४ ) में ६२ डकैतों को और अगले दो वर्षों में
६५ डकैतों को सजाएं दी गई। इसी प्रकार वि० सं० १६४० से १९४७ (ई० स० १८८३ और १८६० ) तक १६८ पुराने डकैतों ने अपने अपराध स्वीकार कर महाराज से क्षमा मांगी और महाराज ने भी आगे के लिये नंक-चलनी की और बुलावाने पर हाज़िर हो जाने की ज़मानतें लेकर उनका अपराध क्षमा कर दिया। साथ ही ऐसे लोगों के लिये विशेष तौर से खेती करने की सुविधा कर देने से देश में का बहुतसा उपद्रव मिट गया।
४७५
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com