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मारवाड़ का इतिहास विवाह सिरोही के राव की कन्या से हुआँ । यहां से यह घाणेराव, सादड़ी, सोजत, बीलाड़ा और मेड़ता होते हुए माघ सुदि १० ( १८ फ़रवरी) को नागोर पहुँचे और चार मास के बाद वि० सं० १९१० की ज्येष्ठ सुदि ८ (ई० स० १८५३ की १४ जून ) को वहां से रवाना होकर दूसरे दिन जोधपुर लौट आए। ___ ज्येष्ठ सुदि १३ (१६ जून ) को जयपुर-नरेश महाराजा रामसिंहजी, विवाह करने के लिये, जोधपुर पहुँचे । महाराजा तखतसिंहजी ने भी डीगाड़ी के पास तक सामने जाकर उनका अभिनन्दन किया । उसी दिन जोधपुर के किले में बड़ी धूम-धाम से उन (जयपुर-नरेश ) का विवाह हुआ । ___ वि० सं० १९१० की कार्तिक वदि ३० (१ नवम्बर ) को उदयपुर के वकील ने राजपूताने में स्थित गवर्नर जनरल के एजेंट से गोडवाड़ का प्रान्त मारवाड़ से लेकर फिर से मेवाड़ को दिलवाने की प्रार्थना की । परन्तु उसे इस मामले में निराश होना पड़ा।
१. उस समय की सरकारी डायरी (रोज़नामचे ) में लिखा है कि जिस समय वि० सं०
१६०६ की माघ वदि ५ (ई० स० १८५३ की २६ जनवरी) को महाराज के पालड़ी (गोडवाड़ में ) पहुँचने पर सिरोही-नरेश की तरफ से विवाह का प्रस्ताव आया, उस समय महाराज की तरफ़ से कहलाया गया कि पुरानी ख्यातों के लेखानुसार पहले सिरोही वाले अपने सरहद के गाँव पोसालिये में आकर अपनी कन्याओं का विवाह महाराजा जसवन्तसिंहजी प्रथम और अजितसिंहजी आदि के साथ कर चुके हैं। इसलिये यदि रावजी उसी प्रकार पाकर विवाह करना स्वीकार करें तो महाराज भी इसके लिये तैयार हो सकते हैं । रावजी ने यह बात मानली । इसीसे सिरोही के सरहदी गांव पोसालिया और मारवाड़ के सरहदी गांव पालडी-धनापुरा के बीच यह कार्य सम्पन्न हुआ। विवाह
का सब प्रबन्ध जोधपुर की तरफ़ से किया गया था। २. फागुन सुदि ११ (ई० स० १८५३ की २१ मार्च) को सर हैनरी लॉरेंस (ए. जी. जी.)
जोधपुर आने वाला था । इसलिये महाराजा फागुन सुदि ६ (१६ मार्च) को कुछ आदमियों के साथ नागोर से चलकर उसी दिन जोधपुर पहुंचे और लॉरेंस से मिलने
के बाद फागुन सुदि १४ ( २४ मार्च ) को लौट कर उसी दिन नागोर पहुँच गए । ३. महाराजा रामसिंहजी का इरादा पहले रीवा विवाह करने को जाने का था । परन्तु
महाराजा मानसिंहजी की कन्या का वाग्दान पहले ही हो चुका था। इसी लिये उन्हें पहले यहां आकर विवाह करना पड़ा। बरात के समय ज़ोर की वर्षा होने से सब बराती इधर उधर हो गए। इसलिये वरका हाथी भी किले का रास्ता छोड़ कर पद्मसर तालाब की तरफ मुडगया। परन्तु श्रीमाली ब्राह्मण बौरा रामा और छोगा ने हाथी के दोनों दांत पकड़ उसे किले के द्वार (फतैपौल ) पर ला खड़ा किया !
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