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महाराजा तनतसिंहजी मँसिर (दिसम्बर) में महाराज शिकार करते हुए सिवाना और जालोर होकर दोतीन दिन के लिये आबू गए, और वहां से लौट कर फिर जालोर होते हुए पौष ( ई० स० १८५४ की जनवरी में जोधपुर चले आए ।
वि० सं० १९११ की ज्येष्ठ वदि ३ ( ई० स० जालोर में महाराज - कुमार जसवन्तसिंहजी का विवाह की कन्या से हुआ ।
आश्विन ( सितम्बर) मास में सिंघी कुशलराज सेना लेकर बगड़ी को तरफ़ चला । इसकी सूचना पाते ही वहां का ठाकुर गांव छोड़ कर भाग गया। कुशलराज ने बगड़ी पर अधिकार कर ठाकुर के कुँवर को पकड़ लिया ।
१८५४ की १५ मई ) को जामनगर के जाम वीभाजी
इसी वर्ष की फागुन सुदि ४ ( ई० स० १८५५ की २० फ़रवरी) को महाराज, रानियों और महाराज - कुमारों को साथ लेकर, दल-बल सहित तीर्थ-यात्रा को चले । इनके परबतसर ( उक्त नाम के मारवाड़ के प्रांत में ) पहुँचने पर ( चैत्र वदि १ = १२ मार्च को ) किशनगढ़-महाराज पृथ्वीसिंहजी वहां आकर इनसे मिले । महाराज ने सामने जाकर उनका सत्कार किया और उन्हें पालकी में सामने बिठाकर अपने निवासस्थान पर ले आए ।
वि० सं० १९१२ की चैत्र सुदि ३ ( ई० स० १८५५ की २० मार्च ) को महाराजा तखतसिंहजी के जयपुर पहुँचने पर महाराजा रामसिंहजी ने श्रमानीशाह के नाले तक सामने आकर इनकी अभ्यर्थना की। वहां पर चौबीस दिन रहने के बाद
१. यहीं पर शिकार के समय दरख्त पर बंधे तख्तों के टूट जाने से पौष सुदि १२ ( ई० स० १८५४ की ११ जनवरी ) को महाराज की एक रानी ( भटियानीजी ) का स्वर्गवास हो गया ।
२. पहले महाराज - कुमार जसवन्तसिंहजी का एक खड्ड जामनगर भेजा गया और वहां पर उसके साथ विवाह की कुछ रीतियां पूरी की गई। इसके बाद विवाह का बाकी कार्य जालोर में पूरा किया गया ।
३. पहले महाराजा मानसिंहजी ने भी किशनगढ़-- नरेश कल्याणसिंहजी को इसी तरह अपने सामने बिठाया था । इसी से यह रिवाज चल गया था।
४. इस यात्रा में महाराज के जयपुर पहुँचने के समय करीब २८,००० आदमी साथ होगए थे । और इस यात्रा का कुल खर्च १०,४०, ३२२ रुपये तक पहुँचा था ।
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