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महाराजा तखतसिंहजी . इस वर्ष मारवाड़ और उसके आस-पास के प्रदेशों में भयंकर अकाल होने से देश में चारों तरफ़ हा-हाकार मच गया था। परन्तु स्वयं महाराजा और खास कर उनकी रानी जाडेजीजी ने जोधपुर में अन्नाभाव से पीड़ित लोगों के भोजन का प्रबन्ध कर हज़ारों प्रजाजनों के प्राणों की रक्षा की। ____ इसी वर्ष गवर्नमैन्ट के और महाराज के बीच एक दूसरे के राज्य के अपराधियों को एक दूसरे को सौंप देने के विषय में संधि' हुई । वि० सं० १९४४ (ई० स० १८८५) में इसमें संशोधन किया गया और ब्रिटिश-भारत के अपराधियों को यहां लाने का प्रबन्ध ब्रिटिश-भारत में प्रचलित कानून के अनुसार किया जाना निश्चित हुआ।
उन दिनों गोडवाड़ के परगने की तरफ़ के जागीरदारों की सहायता से वहां के मीणा और भील लोग बड़ा उपद्रव किया करते थे । इसलिये वि० सं० ११२५ के फागुन (ई० स० १८६९ की फ़रवरी) में महाराज की आज्ञा से महाराज-कुमार जसवन्तसिंहजी ने वहां पहुँच बहुत से उपद्रवियों को मार डाला और बहुतों को पकड़ कर जोधपुर भेज दिया । यह देख महाराज ने एक लाख की आय का वह प्रान्त महाराजकुमार को उनके खर्च के लिये सौंप दिया ।
वि० सं० १९२६ के सावन (ई० स० १८६९ के अगस्त ) में महाराज, जागीरदारों द्वारा ज़बरदस्ती दबाए हुए गांवों के छुड़वाने का प्रबन्ध करने के लिये,
आबू जाकर गवर्नर जनरल के एजैंट से मिले और वहां से लौट कर दीवानी का काम मरदानअली को सौंप दिया।
वि० सं० १९२६ (ई० स० १८६९ ) में हुक्मनामे ( नए जागीरदारों के गद्दी पर बैटने के समय के राज्य के नज़राने ) का कानून बना, और साथही जागीरदारों
१. ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३ पृ० १३६-१४१ ।
" " " " " " " भा० ३. पृ० १६१। ३. यह वि० सं० १६२६ की आश्विन सुदि ६ (ई० स० १८६६ की १४ अक्टोबर)
को दीवान बनाया गया था। इसने १६२८ की कार्तिक वदि ६ (ई० स० १९७१ की ३ नवम्बर ) तक यह काम किया । इसके बाद मैहता हरजीवन को यह काम
दिया गया। ४. हुक्मनामे की रकम साधारण तौर पर रेख का पौन हिस्सा नियत किया गया। साथ ही
ठाकुर के पीछे उसके लड़के या पोते के गद्दी बैठने पर उस साल की रेख और चाकरी माफ करदी गई । परन्तु भाइयों या बन्धुओं में से गोद लिए जाने पर रेख लेना और
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