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महाराजा तखतसिंहजी
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वि० सं० १९२७ की कार्तिक वदि ( ई० स० १८७० के अक्टोबर ) में लॉर्ड मेयो ने अजमेर में एक दरबार किया और सब रईसों को उसमें उपस्थित होने के लिये बुलवाया । वहां पर महाराज के और गवर्नमैन्ट के बीच उदयपुर और जोधपुर की बैठकों के विषय में झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इसपर यह ( महाराजा तखतसिंहजी ) लौट कर जोधपुर चले आए। यह बात गवर्नमैंट को बुरी लगी । इसी से उसने महाराज की सलामी की दो तोपें घटाकर १७ से १५ करेदीं ।
अपनी तरफ़ के
वि० सं० १९२८ ( ई० स० १८७१ ) में महाराज ने सिरोही में घुस कर उपद्रव करने के कारण, उक्त प्रान्त का प्रबन्ध से नियुक्त सिरोही के पोलिटिकल सुपरिन्टैन्डैन्ट को सौंप दिया, और एक अफ़सर को उसका सहकारी नियत कर प्रबन्ध में मदद देने के लिये कुछ सेना भी जालोर भेजैदी । इसी वर्ष की कार्तिक सुदि १ ( २० नवम्बर ) को महाराज ने जागीरदारों का झगड़ा तय करने के लिये पोलिटिकल एजैंट के नाम एक पत्र लिखा । उसमें अपनी तरफ़ के पंचों के नाम और जागीरें लौटाने के नियम थे ।
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वि० सं० १९२६ के आषाढ ( ई० स० १८७२ की जुलाई ) में जिस समय महाराज आबू पर थे, उस समय कुछ जागीरदारों की मिलावट से द्वितीय महाराज कुमार जोरावरसिंहजी ने नागोर के किले पर अधिकार करलिया । इसकी सूचना
जालोर वालों के गवर्नमेन्ट की तरफ़
१. ये सलामी की १७ तोपें वि० सं० १६२३ ( ई० स० १८६७ ) में महारानी विक्टोरिया की तरफ से नियत की गई थीं ।
महाराज के नाराज़ होकर अजमेर से लौट आने पर महाराज - कुमार जसवन्तसिंहजी ने गवर्नर-जनरल मिलकर यह झगड़ा शान्त कर दिया ।
२. इसी वर्ष तिंवरी के जागीरदार ने अन्य जागीरदारों से मिल कर बहुत अरसे से ज़ब्त था, ज़बरदस्ती कब्ज़ा कर लिया। परन्तु राज्य उसे वहां से भगा दिया ।
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३ सरदारों में:
१ पौकरन, २ कुचामन, ३ रायपुर, ४ नींबाज, ५ रीयां और ६ खैरवा के ठाकुरों के और मुसद्दियों में:
७ मेहता विजैमल, ८ सिंघी समरथराज, ६ हरजीवन, १० पंडित शिवनारायण, ११ मुहता कुंदनमल, और १२ राव सरदारमल के नाम थे ।
४. यद्यपि यह महाराज के द्वितीय पुत्र थे, तथापि उनके जोधपुर गोद आने के बाद पहले - इसीसे यह राज्य में, अन्य भाइयों से, अपना हक़ में नागोर प्रान्त के खाटू आागोता और हरसोलाव
पहल इन्हीं का जन्म हुआ था । विशेष समझते थे । इस मामले आदि के ठाकुर भी शरीक़ थे ।
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अपने गांव पर,
की सेना ने पहुँच
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