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महाराजा तखतसिंहजी आश्विन सुदि ६ (१८ अक्टोबर ) को महाराज आगरे के दरबार में सम्मिलित होने को रवाना हुए । इनके सांभर पहुँचने पर दीवान हाजी मोहम्मद कुछ दिन की छुट्टी लेकर अजमेर चला गया। यह आगरे का दरबार वि० सं० १९२३ की कार्तिक सुदि १२ (ई० स० १८६६ की १९ नवम्बर) को हुआ था । इसी में गवर्नर जनरल लॉर्ड लॉरसे ने अपने हाथों से महाराज को जी. सी. एस. आई. का पदक पहनाया । गवर्नर जनरल का विचार राजपूताने में शस्त्र-कानून (आर्स ऐक्ट) प्रचलित करने का था । परन्तु महाराज ने अन्य उपस्थित रईसों के साथ मिलकर बड़ी कुशलता से इसे रुकवा दिया । पौष वदि १२ (ई० स० १८६७ की २ जनवरी) को महाराज आगरे से लौट कर जोधपुर चले आए।
इसके बाद हाजी मोहम्मदखाँ ने पुराने प्रबन्ध को बदलकर अंगरेज़ी ढंग पर नया प्रबन्ध करना प्रारम्भ किया । परन्तु उसके मुल्की और फौज़ी कामों पर बहुत से मुसलमानों को नियुक्त कर देने के कारण मारवाड़ के लोग उससे नाराज़ होगएँ । इसीसे वि० सं० १९२४ के कार्तिक (ई० स० १८६७ की नवम्बर) में किसी ने गुप्त रूप से उसे पुष्कर में मारडाला ।
वि० सं० १९२३ की आषाढ़ सुदि ७ (ई० स० १८६६ की १६ जुलाई) को गवर्नमैन्ट के और महाराज के बीच एक अहदनामा लिखा गया । इसके अनुसार महाराज ने जोधपुर राज्य में होकर निकलनेवाली रेलवे के लिये, विना किसी एवज्राने के, जमीन देना और रेल द्वारा मारवाड़ में होकर बाहर जानेवाले माल पर चुंगी न लेना निश्चित किया।
१. डा० जेम्स बर्जेस की क्रॉनॉलॉजी ऑफ इन्डिया, पृ० ३८२। २. इसी समय महाराजा की सलामी की १७ तोपें नियत की गई। ३. वि० सं० १९२४ की वैशाख वदि ८ (ई० स० १८६७ की २७ अप्रेल ) को
महाराज-कुमार ज़ालिमसिंहजी को कंटालिये के ठाकुर गोरधनसिंह के गोद देने का प्रबन्ध किया गया । पर इसमें सफलता नहीं हुई । इसी वर्ष के आषाढ ( जुलाई ) में मेहता विजयमल ने, पोलिटिकल-एजेंट की मारफ़त, घाणेराव के ठाकुर पर हुक्म-नामा
(नाम का कर) लगाया। ४. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३८-१३६ । ५. इसी वर्ष के अन्त में कप्तान इम्पे द्वारा जोधपुर और बीकानेर की सरहद का निर्णय
करवाया गया।
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