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मारवाड़ का इतिहास नरेश लक्ष्मणसिंहजी की कन्या से हुआ । वहां से लौटने पर, वि० सं० १९२२ (ई० स० १८६५ ) में, महाराज प्रयाग होते हुए गवर्नर जनरल से मिलने के लिये कलकत्ते गए, और लौटते समय भरतपुर और जयपुर होते हुए, वि० सं० १९२२ की भादों वदि १२ ( ई० स० १८६५ की १८ अगस्त) को, जोधपुर पहुँचे। इसी वर्ष महाराज ने पुष्कर की यात्रा भी की थी। ____ महाराज बहुधा रनवास के साथ या शिकार में रहा करते थे। इससे राज्य कार्य की देख-भाल पूरी तौर से नहीं हो सकती थी, और राज-कर्मचारियों को मनमानी करने का मौका मिल जाता था। इसपर वि० सं० १९२३ के वैशाख (ई० स० १८६६ के अप्रेल ) में महाराज ने मिस्टर टेलर नामके एक अवसर प्राप्त (रिटायर्ड) अंगरेज अधिकारी को रियासत का काम करने के लिये बुलवाया। इसके बाद प्रथम जेठ वदि ११ ( १० मई) को उसे दीवानी का काम सौंपा गया और मुंशी हाजी मोहम्मदखा उसका नायब बनाया गया।
प्रथम जेठ सुदि ५ (११ मई ) को गवर्नर जनरल के एजैंट के पास नियुक्त जोधपुर राज्य के वकील ने एजैंट के हाजी मोहम्मदखा से नाराज होने की सूचना दी; और साथही उसने यह भी लिखा कि उस (एजैंट) की इच्छा उसे राज्य से बाहर भिजवा देने की है । परन्तु महाराज ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया ।
इसी वर्ष के भादों (सितम्बर) में सिरोही से दस कोस इधर के पोसालिया नामक गांव में महाराज का विवाह सिरोही के राव शिवसिंहजी की कन्या से हुआ।
राज-कर्मचारियों के षड्यंत्र से राज्य का कार्य न चला सकने के कारण, आश्विन सुदि १ (६ अक्टोबर ) को, मिस्टर टेलर तीन महीने की छुट्टी लेकर हमेशा के लिये यहां से चला गया । इस पर दीवानी का काम हाजी मोहम्मद को सौंपा गया।
१. वहीं पर महाराज-कुमार मोहबतसिंहजी और किशोरसिंहजी के विवाह भी हुए थे। २. वि० सं० १९२३ की चैत्र वदि १२ (ई० स० १८६७ की १ अप्रेल) को, अंगरेज़ी
शिक्षा के लिये, पहले पहल नगर में, प्रजा की तरफ से एक स्कूल खोला गया; और वि० सं० १६२४ की वैशाख सुदि २ (६ मई) को प्रजा की तरफ से ही, 'मुरधरमिन्त' नामक सप्ताहिक पत्र निकालने के लिये 'मुरधरमिन्त' नाम का प्रेस स्थापित किया गया। परन्तु वि० सं० १९२६ की आषाढ सुदि १ ( ई० स० १८६६ की १० जुलाई) को राज्य ने इन संस्थाओं को अपने तत्वावधान में लेकर इनका नाम क्रमशः "दरबार स्कूल", "मारवाड़ गज़ट" और "मारवाड़ स्टेट-प्रेस" रख दिया ।
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