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मारवाड़ का इतिहास को वार्षिक १०,००० रुपये देना निश्चित किया, और जोधपुर से मिलनेवाली करकी रकम के १,०८,००० रुपयों में से इस रकम को घटाकर आगे से वार्षिक २८,००० रुपया लेना स्वीकार किया । परन्तु महाराज ने गवर्नमैन्ट को साफ़ तौर से लिख दिया कि उमरकोट हमारा है और जिस दिन वह हमको लौटाया जायगा वह दिन हमारे लिये बड़ी ही खुशी का होगा। ___पहले लिखे अनुसार जागीरों का झगड़ा तय न होने से कुछ सरदार तो पहले से ही महाराज से नाराज हो रहे थे, परन्तु इन दिनों कुछ लोगों के कहने-सुनने से स्वर्गवासी महाराजा मानसिंहजी की रानियां भी इनसे अप्रसन्न हो गईं । इसलिये वि० सं० १९०३ की पौष सुदि १२ (ई० स० १८४६ की २६ दिसम्बर) को जब कर्नल सदरलैंड और महाराज के बीच जोधपुर में बातचीत हुई, तब उसने इन्हें इस बात की सूचना दी । इस पर महाराज ने दूसरे ही दिन कुछ सरदारों की जागीरों में वृद्धि करने का वादाकर उन्हें अपनी तरफ़ करलिया । इसके आठ दिन बाद, सदरलैंड की सलाह से, माजी साहबाओं को भड़कानेवाले लोग कैद करलिए गए ।
वि० सं० १६०४ की द्वितीय ज्येष्ठ सुदि ४ (ई० स० १८४७ की १७ जून) को यह समझौता पक्का हुआ था।
ख्यातों से ज्ञात होता है कि सिंध-विजय के समय सहायता के लिये जोधपुर से भी सेना भेजी गई थी। परन्तु उसमें बीमारी फैल जाने से उसे मार्ग से ही लौट आना पड़ा ।
१. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ एंगेजमेंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १३८ । २. यह पत्र वि० सं० १६०४ की प्रथम ज्येष्ठ सुदि १ (ई० स० १८४७ की १५ मई)
को लिखा गया था। ३. आसोप-ठाकुर को चिमणवा, गाधेडी, गोयन्दपुरा, भाँनावास, राडोद और राणावतों
की आधी पालड़ी; रास-ठाकुर को हुनावास आदि दो गांव और बासनी-ठाकुर को कुचेरे के बदले (जो ज़ब्त हो चुका था) (नागोर प्रान्त का ) माणकपुरा देना निश्चित किया ।
बगड़ी-ठाकुर को महाराज की सेवा में उपस्थित होने की आज्ञा दी गई।
आसोप-ठाकुर को ऊपर लिखे गांव फागुन सुदि १५ ( ई० स० १८४७ की २ मार्च) को दिए गए थे।
४. कैद किए गए लोगों के नाम :--
__ आसोपा सुरतराम, उसका पुत्र महाराम, पुरोहित सैंबरीमल और थानवी पनालान ।
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