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मारवाड़ का इतिहास
उन्हें लौटा दी गईं । परंतु कई गांव ऐसे थे जिन पर भिन्न-भिन्न समयों में भिन्न-भिन्न सरदारों के अधिकार रह चुके थे ।
कर्नल सदरलैंड ने ऐसे गांवों का निर्णय महाराज की इच्छा पर ही छोड़ दिया, और आगे राज्य कार्य चलाने के लिये एक पंचायत बनवादी । इसमें निम्नलिखित सरदार और मुत्सद्दी थे:
सरदार
१ पौकरन - ठाकुर चांपावत बभूतसिंह, २ आउवा - ठाकुर चांपावत कुशलसिंह, ३ नींबाज-ठाकुर ऊदावत सवाईसिंह, ४ रास-ठाकुर ऊदावत भीमसिंह, ५ रीयांठाकुर मेड़तिया शिवनाथसिंह, ६ कुचामन - ठाकुर मेड़तिया रणजीतसिंह, ७ आसोप ठाकुर कूंपावत शिवनाथ सिंह ( यह बालक था । इससे कंटालिये का ठाकुर शंभूसिंह इसका प्रतिनिधि रहा ) और ८ भाद्राजन ठाकुर जोधा बख़तावरसिंह ।
मुत्सद्दी
१ दीवान सिंघी गंभीरमल, २ बख़्शी सिंघी फौजराज, ३ धायभाई किलेदार देवकरण, ४ वकील रावे रिधमल और ५ जोशी प्रभुलाल ।
इसके बाद पोलिटिकल एजैंट लडलो सूरसागर में रहने लगा और कर्नल सदरलैंड जयपुर की तरफ़ होता हुआ कलकचे चला गया । कुछ दिन बाद जब फागुन सुदि १२ ( ई० स० १८४० की १५ मार्च ) को वह वहां से लौटकर आया, तब उसने क़िला महाराज को सौंप दिया । इसके बाद चैत्र (अप्रेल) में कर्नल सदरलैंड अजमेर चला गया और राजकार्य की देखभाल मि० लडलो के ज़िम्मे रही ।
१. इसके स्थान पर कहीं-कहीं रायपुर-ठाकुर का उल्लेख मिलता है । किसी-किसी ख्यात में दोनों का नाम नहीं है ।
२. क़िला वापस मिलने पर महाराज ने रिधमल को 'रावरजा बहादुर' का ख़िताब और सरोपाव दिया था।
३. वि० सं० १८६७ के आश्विन ( ई० स० १८४० के सितम्बर) में सिवाने परगने के बागियों ने आसोतरा - ठाकुर शक्तसिंह के पुत्र रत्नसिंह को धौंकलसिंह का पुत्र बनाकर वहां पर उपद्रव खड़ा किया। परंतु सिंघी फौजराज ने जाकर उन्हें दबा दिया ।
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